Sunday, 21 March 2010

नवरात्र का छठा दिन माँ कात्यायनी का


सम्पूर्ण रोग विनाशक, भय से मुक्ति दिलाने वाली माँ कात्यायनी की उपासना।

नवरात्र के पावन समय में छठवें दिन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को प्रदान क रने वाली भगवती कात्यायनी की पूजा वंदना का विधान है। साधक, आराधक जन इस दिन मां का स्मरण क रते हुए अपने मन को आज्ञा चक्र में समाहित क रते हैं। योग साधना में आज्ञा चक्र का बड़ा महत्व होता है। मां की षष्ठम् शक्ति कात्यायनी नाम का रहस्य है। एक कत नाम के ऋ षि थे। उनके पुत्र ऋ षि कात्य हुए इन्हीं कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए उनके कठोर तपस्या के फलस्वरूप उनकी इच्छानुसार भगवती ने उनके यहां पुत्री के रू प में जन्म लिया।

भगवती कात्यायनी ने शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक ऋ षि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और महिषासुर का वध कि या था। इसी कारण छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ा। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत विशाल एवं दिव्य है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ वर मुद्रा में, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में, तीसरे हाथ में सुंदर क मल पुष्प और चौथे हाथ में खड्ग धारण कि ये हुए हैं। मां सिंह पर सवार हैं। जो मनुष्य मन, क र्म, व वचन से मां की उपासना क रते हैं उन्हें मां धन-धान्य से परिपूर्ण एवं भयमुक्त क रती हैं।

साधना विधान -

सबसे पहले मां कात्यायनी की मूर्ति या तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। तदुपरांत चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। दीपक प्रावलित रखें। तदुपरांत हाथ में लाल पुष्प लेक र मां का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

चन्द्रहासोवलक रा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

इसके बाद मां को हाथ में लिए हुए पुष्प अर्पण करें तथा मां का षोडशोपचार से पूजन क रें। नैवेद्य चढ़ाएं तथा 108 की संख्या में मंत्र जाप क रें -

मंत्र -

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

मंत्र की समाप्ति पर मां की प्रार्थना तथा आरती क रें।

भोग

इस दिन देवी के पूजन में मधु का महत्त्व बताया गया है। वह मधु ब्राह्मण अपने उपयोग में ले। इसके प्रभाव से साधक सुन्दर रूप प्राप्त करता है।