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Saturday, 20 March 2010
नवरात्र का पांचवां दिन माँ स्कंदमाता का
ग्रह कलह निवारण करने वाली माँ स्कंदमाता की उपासना।
नवरात्र के पुण्य पर्व पर पांचवें दिन मां स्कं द माता की पूजा, अर्चना एवं साधना का विधान वर्णित है। मां के पांचवें स्वरूप को स्कं द माता के नाम से जाना जाता है। पांचवें दिन की पूजा साधना में साधक अपने मन-मस्तिष्क को विशुद्ध चक्र में स्थित क रते हैं। स्कंद माता स्वरू पिणी भगवती की चार भुजाएं हैं। सिंहारूढ़ा मां पूर्णत: शुभ हैं। साधक मां की आराधना में निरत रहक र निर्मल चैतन्य रूप की ओर अग्रसर होता है। उसका मन भौतिक काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) से मुक्ति प्राप्त क रता है तथा पद्मासना मां के श्री चरण क मलों में समाहित हो जाता है। मां की उपासना से मन की सारी कु ण्ठा जीवन-क लह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।
मां की उपासना के साथ ही भगवान स्कं द की उपासना स्वयं ही पूर्ण हो जाती है। क्योंकि भगवान बालस्वरू प में सदा ही अपनी मां की गोद में विराजमान रहते हैं। भवसागर के दु:खों से छुटकारा पाने के लिए इससे दूसरा सुलभ साधन कोई नहीं है।
पूजन विधि -
सर्व प्रथम मां स्कं द माता की मूर्ति अथवा तस्वीर को लक ड़ी की चौकी पर पीले वस्त्र को बिछाक र उस पर कुं कुं म से ॐ लिखक र स्थापित करें। मनोकामना की पूर्णता के लिए चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। हाथ में पीले पुष्प लेक र मां स्कं द माता के दिव्य ज्योति स्वरूप का ध्यान क रें।
ध्यान मंत्र -
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कं द माता यशस्विनी॥
ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर छोड़ दें। तदुपरांत यंत्र तथा मनोकामना गुटिका सहित मां का पंचोपचार विधि द्वारा पूजन क रें। पीले नैवेद्य का भोग लगाएं तथा पीले फ ल चढ़ाएं। इसके बाद मां के श्री चरणों में प्रार्थना क र आरती पुष्पांजली समर्पित क रें तथा भजन कीर्तन क रें।
भोग
इस दिन पूजा करके भगवती को केले का भोग लगाये और वह प्रसाद ब्राह्मण को दे दें, ऐसा करने से पुरुष की बुद्धि का विकास होता है।
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