Wednesday 31 March 2010

“AMAZING IS A GRACE OF GURU WHICH GIVES SPIRITUAL REVELATION AND ENLIGHTENS OUR SOUL.”

A Graceful eye of Guru fills the heart of disciple with that brilliant radiance which brings the mystery of this universe in his grip. It’s well versed:

Guru prem ka ank pdaye diya,Aab padne mien kuch nahi baki.

Bavan chirag jalaye diya,Pat kholi mahal mai ley jhanki

Char ved to pasaye takhat lage,Sucham ved upar aasan ja ki

Kahe kabir ik nor seti,Sarfraj hua banda khaki.

It says,

When devotee fully engrosses himself in service of guru’s lotus feet under his protection, then his heart and soul get absorbed!

When his heart immerses in the education and initiations taught by Guru Dev, then it reveals the clear vision about the secret of four Hindu Vedas!

The entity of devotee dissolves with the supreme element of this universe!

This is a reason why all saint, sages and scriptures sing Guru Mahima i.e. The glory of Guru and illustrate the importance of service and discourses of Guru.

Inference from Book: ‘Lali Mere Lal Ki Jit Dekhoo Tit Lal’

GURU DARBAR

Hkwyks dks jkg fn[kk ns] jkg ij pyuk fl[kk ns ] eqf’dy esa jgs lnk lkFk ] fQj Hkh u le>s xq# vuqdaik] rks Hkwy gS gekjh A

Shows the path to the lost one’s, teaches to follow the path, helps to access through difficulties still we don’t learn about GRACE OF GURU then we are at fault !

u HkVduk tkuus esa xq# ds fujkys ksyh tc cjlk;s A

Don’t try to learn means and ways of Guru when, how and why? You just learn to open your alms bags, when Guru showers bountiful of grace!

dc vk tk;s ] dgka vk tk;s] dSls vk tk;s] fdldks gS irk \

tks igpku tk;s ekuks rj tk;s A

When does appear, where does appear, how does appear? No one is aware of! Those who identify understand the presence of supreme divine.

We are the part of universal supreme ‘THE DIVINE LIGHT’ which is dispersed in each entity of universe.

ü To learn and know more about read book written by Guruji :

[kqyk vkea=.k ] An awakening Call to Eternal Bliss

GURU DARBAR

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ü To learn and know more about read book written by Guruji :

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कालसर्प

मूलत: राहु-केतु दोनों ही आधयात्मिक ग्रह हैं। अत: इन ग्रहों के विशेष अधययन की नितांत आवश्यकता है। वास्तव में राहु-केतु ग्रहों का हमारे कार्मिक फल से बहुत गहरा संबंधा है। ये ग्रह जीवन के सूक्ष्म विन्दुओं के ज्यादा निकट हैं। इनका सीधाा संबंधा हमारी चेतना से है। (ये दोनों ग्रह अपना प्रभाव देने में अचूक हैं।

राहु-केतु ग्रहों को छाया ग्रह कहा जाता है, क्योंकि आकाश में ये दोनों ग्रह विन्दुओं के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। जहां सूर्य और चन्द्र पथ एक-दूसरे से मिलते हैं। उस विन्दु विशेष को राहु-केतु छयाग्रह कहा गया है।

मुख्यत: इन छाया ग्रहों से जातक के आंतरिक स्वभाव का पता चलता है। जिसके अनुसार जातक अपने जीवन को गतिमान कर सकता है। इन ग्रहों की स्पष्ट व्याख्या से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे अपनी सुरक्षा कर सकता है। किन्तु इन छाया ग्रहों के बारे में एक बात सत्य है कि इन ग्रहों द्वारा जीवन में जो भी अनिष्टकारी घटनायें होती है। वे जातक को आधयात्मिक की ओर अग्रसर करती है। कालसर्प योग के प्रमुख भेद

कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्तुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है -

1. अनन्त कालसर्प योग

जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। राहु जब लग्न में हो तो जातक धनवान होता है, बलवान होता है साथ-साथ बहुत ही दृढ़ निष्चयी और साहसी होगा। हां इतना जरुर मैंने देखा है कि उसकी पत्नी का स्वास्थ्य हमेषा प्रतिकूल रहता है। परन्तु वे अपने पुरुषार्थ से अच्छी सफलता पाते हैं।

उपाय:

सूर्योदय के बाद तांबे के पात्र में गेहूं, गुड़, भर कर बहते जल में प्रवाह करें। संतान कष्ट हो तो काला और सफेद कम्बल गरीब को दान करें।
प्रतिदिन एक माला '्र नम: शिवाय' मंत्रा का जाप करें। कुल जाप संख्या 21 हजार पूरी होने पर शिव का रुद्राभिषेक करें।
कालसर्पदोष निवारक यंत्रा घर में स्थापित करके उसका नियमित पूजन करें।
नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रख बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें।
प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्रा का पाठ करें।
राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्रा का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्रा का दान करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शनिवार का व्रत रखते हुए हर शनिवार को शनि व राहु की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल में अपना मुंह देखकर उसे शनि मंदिर में समर्पित करें।
2 कुलिक कालसर्प योग

राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। इस भाव में राहु हमेषा जातक को दोहरे स्वभाव का बनाता है। अत्याधिक आत्मविष्वास के कारण अनेकों प्रकार की परेषानियों का सामना इन्हें करना पड़ता है। प्रियजनों का विरह झेलना पड़ता है। कई बार इस जातक को पाइल्स की षिकायत भी देखी गई है। कारण की केतु अष्टम स्थान में है। परन्तु एक बात मैंने देखी है कि केतु यहां पर मेष, वृष, मिथुन, कन्या और वृष्चिक राषि में हो तो जातक के पास धन की कमी नहीं होती। ऐसे व्यक्तियें को विरासत में बहुत धरोहर मिलती है।

उपाय:

चांदी की ठोस गोली सफेद धागे में हमेषा गले में धारण करें। केसर का तिलक लगाना भी आपके लिए शुभ होगा।
सरस्वती जी की एक वर्ष तक विधिवत उपासना करें।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
3. वासुकी कालसर्प योग

राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है।यदि तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु तो जातक के पास धन-दौलत और वैभव की कोइ कमी नहीं रहती। स्त्री सुख अनुकूल रहता है साथ ही मित्र भी हमेषा सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। परंतु अपने से छोटे भाइयों से इनका हमेषा विरोध रहता है। परन्तु पिता से अच्छी निभती है और पिता का आज्ञाकारी पुत्र भी होता है। तृतीय भाव में राहु हो तो ऐसे वयक्ति धर्म के माध्यम से धन अर्जित करते हैं और बहुत ही प्रसिध्द होते हैं। विदेश यात्रा करते हैं, व देश विदेश में यश प्राप्त करते हैं जैसे मुरारी बापू।

उपाय:

चवल, दाल और चना बहते पानी में प्रवाह में करें। साथ ही मकान के मुख्य द्वार पर अंदर-बाहर तांबे का स्वस्तिक या गणेष जी मूर्ति टांग दें।
नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रा में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
महामृत्युंजय मंत्रा का 51 हजार जप राहु, केतु की दशा अंतर्दशा में करें या करवायें।
किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्रा को अभिमंत्रिात कर धारण करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रा धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्रा का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला '्र नम: शिवाय' मंत्रा का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रा व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।
4. शंखपाल कालसर्प योग

राहु चौथे स्थान में और केतु दशम स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है। यदि राहु यहां उच्च का हो षुभ राषि वाला हो तो सभी सुखों से परिपूर्ण होता है। और जातक की कुंडली में षुक्र अनुकूल हो तो विवाह के बाद कारोबार और धन में वृध्दि होती है। साथ ही यदि चंद्रमा लग्न में हो तो आर्थिक तंगी कभी नहीं रहती। इस जातक को 48 वर्ष की आयु में बृहस्पति का उत्तम फल प्राप्त होता है। परन्तु फिर भी सफलता के लिए इन्हें विघ्नों का सामना करना पड़ता है। लेकिन केतु दषम भाव में मेष, वृष, कन्या और वृष्चिक राषि में है तो और भी उत्तम फल प्राप्त होता है एवं शत्रु चाह कर भी हानि नहीं पहुंचा सकता। चतुर्थ में राहु व दशम में केतु हो तो ऐसे व्यक्ति राजनिति में उतार चढ़ाव रहते हुए राजनिति में अच्छी सफलता पाते हैं। जैसे मुलायम सिंह जी, चौधरी चरण सिंह। ऐसे व्यक्तियों को दूसरे साथीयों से न चाहते हुए भी सहयोग प्राप्त होता है

उपाय:

गेहूं को पीले कपड़े में बांध कर जरुरतमंद व्यक्ति को दान दें। 400 ग्राम धनियां बहते पानी में प्रवाह करें।
अनुकूलन के उपाय -
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
नीला रुमाल, नीला घड़ी का पट्टा, नीला पैन, लोहे की अंगूठी धारण करें।
शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
हरिजन को मसूर की दाल तथा द्रव्य शुभ मुहूर्त में तीन बार दान करें।
18 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। लसनी, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, धूम्रवस्त्रा, धाूम्रपुष्प, नारियल, कंबल, बकरा, शस्त्रा आदि एक बार दान करें।
5. पद्म कालसर्प योग

राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। पंचम भाव में राहु व ग्यारहवें भाव में केतु अध्यात्म की ओर प्रेरित करता है। उत्तम परिवार वाला, आर्थिक स्थिति मजबूत साथ ही उत्तम गुणा एवं भोग से युक्त होता है। केतु ग्यारहवें घर में सम्पूर्ण सिध्दि व सफलता प्राप्त कराता है परन्तु इस योग में संतान पक्ष थोड़ा कमजोर रहता है। साथ ही जातक अपने भाइयों के प्रति थोड़ा कलहकारी होता है। 21 या 42 वर्ष की अवस्था में पिता को थोड़े कष्ट की सम्भावना रहती है। यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्रकी सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं। पंचम में राहु व एकादश में केतु हो तो ऐसे व्यक्ति सफल राजनितिक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को उतार चढ़ाव आते हैं परन्तु सफलता व यश अच्छा प्राप्त होता है। अधिकतर बड़े राजनितिज्ञों में यह कालसर्प योग पाया जाता है। जैसे नारायण दत्त तिवारी, राम विलास पासवान, शीला दिक्षित, शंकर राव चौहान आदि के जिवन से आप सब परिचित हैं। क्योंकि यह भाव पूर्व जन्मों से सम्बंधित होते हैं। पंचम और एकादश यह दोनो भाव ऐसे हैं राहु केतु कहीं भी बैठें हमेशा अच्छी ही सफलता मिलती है। ऐसे व्यक्तियों को उदर (पेट) के माध्यम से शरिरिक कष्ट आता है।

उपाय:

रात को सोते समय सिरहाने पांच मुलियां रखें और सवेरे मंदिर में रख आएं। संतान सुख के लिए दहलीज के नीचे चांदी की पत्तर रखें।
किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्रा को पूजित कर धारण करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और भोजनालय में बैठकर भोजन करें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
शयन कक्ष में लाल रंग के पर्दे, चादर तथा तकियों का उपयोग करें।
6. महापद्म कालसर्प योग

राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में राहु को छटे स्थान में बहुत ही प्रषस्त अनुभव किया गया है। सम्पत्ति, वाहन, दीर्घायु, सर्वत्र विजय, साहसी, बहादुर और उच्च प्रवाह का होता है। लोगों को बहुत सहयोग करता है। यहां तक की फांसी के फंदे से बचा कर लाने की क्षमता होती है। परंतु स्वयं कभी निरोग नहीं रहता। अनेको प्रकार की बिमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि जातक को सट्टे या जुए की आदत लग जाए तो बर्बाद हो जाता है। आंखों की बिमारी से दूर रहना चाहिए। राहु छठे में और केतु द्वादश में हो तो ऐसे व्यक्ति धर्म से जुड़े होते हैं सभी प्रकार की प्रतिस्पर्धा में अच्छी सफलता पाते हैं तथा दान पुण्य और दूसरों की मदद में अपना सब कुछ लुटाने को ततपर रहते हैं। जैसे पं जवाहर लाल नेहरु।

उपाय:

गणेष जी की उपासना सर्वमंगलकारी सिध्द होगी।
श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्रा धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्रा की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें एवं तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राध्द भी एक बार अवश्य करें।
मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।

7. तक्षक कालसर्प योग

केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक बहुत ही उंच्चे सरकारी पदों पर काम करता है। सुखी, परिश्रमी और धनी होता है। वह अपने पिता से बहुत ही प्यार करता है और साथ ही बहुत सहयोग करता है। लक्ष्मी की कोई कमी नहीं होती है लेकिन जातक स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला होता है। यदि अपनी संगत अच्छे लोगों के साथ रखे तो अच्छा रहेगा। गलत संगत की वजह से परेषानी भी आ सकती है यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना शुरु कर दें साथ ही अपने मान-सम्मान के fy, दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।

उपाय:

11 नारियल बहते पानी में प्रवाह करें।
कालसर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को ख्लिाएं।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्रा और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।
8. कर्कोटक कालसर्प योग

केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक उदार मन, समाज सेवी और धनवान होता है। परंतु वाणी पर संयम कभी नहीं रहता। साथ ही परिवार वालों से कम ही पटती है। साथ ही अपने कार्यों को बदलते रहता है। षिक्षा में समस्या आती है। साथ ही जातक हमेषा निंदा का पात्र होता है।

उपाय:

चांदी का चकोर टुकरा हमेषा अपनी जेब में रखें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्ताू उनके बिलों पर डालें।
अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
9. शंखचूड़ कालसर्प योग

केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है। योग में जातक दिर्घायु, साहसी, यषस्वी और धन-धान्य से परिपूर्ण होता। दाम्पत्य सुख बहुत ही अनुकूल रहता है। सर्वत्र विजय और सम्मान पाता है। परन्तु इस जातक का चित हमेषा अस्थिर रहता है।

उपाय:

राहु और केतु के बीज मंत्रों का जाप करें।
अनुकूलन के उपाय -
इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधिात जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 18 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्रा धारण करके राहु बीज मंत्रा की तीन या 18 माला जाप करें। जाप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।

10. घातक कालसर्प योग

केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में जातक परिश्रमी, धन संचयी व सुखी होता है। राजयोग का सुख भोगता है। दषम राहु राजनिती में अवष्य सफलता दिलाता है। मनोवांछित सफलताएं मिलती है। यदि शनि अनुकूल बैठा हो तो। परन्तु जातक हमेषा अपनी जन्म भूमि से दूर रहता है। माता का स्वास्थ्य प्रतिकूल रहता है। सब कुछ होने के बाद भी जातक के पास अपना सुख नहीं होता है।

उपाय:

हर मंगलवार का व्रत करें और 108 हनुमान चालीसा का पाठ करें।
त्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
शनिवार का व्रत रखें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला वस्त्रा, काला फूल, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल व हथियार आदि का समय-समय पर दान करते रहें।
नागपंचमी के दिन व्रत रखें और चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर दें।
शनिवार का व्रत करें और नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें। मंगलवार के दिन बंदरों को केला खिलाएं और बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें।
11. विषधर कालसर्प योग

केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में जातक 24 वर्ष की अवस्था के बाद सफलता प्राप्त करता है। आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। ग्यारहवें भाव में राहु हमेषा अनुकूल फल प्रदान करता है। उचित व अनुचित दोनों तरीकों से धन की प्राप्ति होती है। दाम्पत्य सुख बहुत ही अनुकूल रहता है। संतान सुख की कोई कमी नहीं रहती। परंतु प्रथम संतान को अवष्य कष्ट मिलता है।

उपाय:

घी का दीपक जला कर दुर्गा कवच और सिद्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
नागपंचमी को चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।
सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - '्र हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा केवल सोलह सोमवार तक करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
12. शेषनाग कालसर्प योग



केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक हमेषा अपनी मेहनत और सूझ-बुझ से सफलता हासिल करता है। परंतु बहुत जरुरी है अपने आचरण को संयमित रखना। संतान पक्ष प्रबल होता है। दीर्घायु होता है। परन्तु ननिहाल पक्ष से हमेषा खटपट लगी रहती है।

उपाय:

काले और सफेद तील बहते जल में प्रवाह करें। किसी भी मंदिर में केले का दान करें।
किसी शुभ मुहूर्त में '्र नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रिात कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग चिपका दें तथा एक बार देवदारु, सरसों तथा लोहवान इन तीनों को उबाल कर स्नान करें।




केतु एक धवजा भी है। किन्तु धवजा का अर्थ पतका या झंडा नही है। केतु को धवजा कहने का अर्थ है कि केतु परमात्मा की शक्ति का मूर्त रूप है। जिसके प्रभाव और चेतना से मनुष्य इस सृष्टि में व्याप्त उस सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी शाक्ति का अनुभव कर सकता है।

Wednesday 24 March 2010

KNOW ABOUT RUDRAKSHA

Rudraksha the name itself conveys a meaning rudra + Raksha. Rudra means Lord Shiva, Raksha means Protection. Lord Shiva is the creator, preserver and destroyer in the form of trinity. Brahma, Vishnu, Mahesha are known as the God of trinity, they are the incarnation of Lord Shiva, The Supreme Power. The supreme power Lord Shiva controls the whole universe in the lineage of Trinity. The bead Rudraksha portrays the form of the Supreme God, the Om. The Universe was manifested in the form of Universal Sound & Om is original sound, the controller of universe.
Each bead of Rudraksha has a specific significance it generates particular vibrations and spiritual energy which gives positive effect on our body.
Due to negative vibrations and energy human body come under the influence of diseases, hurdles and changed mental attitude. If right Rudraksha is worn by the advice of good astrologer all troubles can be surmounted. Followed are few tips:
Ø One faced Rudraksha: It imparts the radiation of Sun. It enhances name and fame, wealth, gives honor and dignity in society, also cures diseases such as constipation, heart problem, bone problems, eye disorders and deficiency of Vitamin A & D
Ø Two faced Rudraksha : It imparts the radiations of Moon. It brings harmony in marital relations, keeps mind calm and peaceful, prevents from arguments and rivalries, also helpful in curing the diseases such as cough, cold, water borne diseases, mental disorders.
Ø Three faced Rudraksha: It helps in pacifying the malefic effects of planet Mars. It brings happiness, vitality and purity. It cures the problem of Blood Pressure and disease of women.
Ø Four faced Rudraksha: It is a life saver, enhances spiritualism, intellectual power, determination skill, courage, confidence and also cures diseases of chest, cancer, indigestion, skin disorders.
Ø Five faced Rudraksha: It strengthens the influence of planet Jupiter increases memory, enhances creativity, communication skills and cures diseases like nervous disorders, insomnia, small pox, tumor, liver trouble.
Ø Six faced Rudradsha: It signifies planet Venus and imparts knowledge and wisdom. It helps the persons involved in physical activities such as games etc., bravery jobs or in army force. It increases emotional and mental strength also cures the diseases related to females.
Ø Seven faced Rudraksha: It is helpful in pacifying the malefic effect of planet Saturn. It is good for deaf and dumb persons. It helps in removing unnecessary fears in mind and also cures the diseases like paralysis, baldness, stomach disorders, cerebrospinal meningitis.
Ø Eight faced Rudraksha: It is good for pacifying the evil effects of Planets Rahu and Ketu. It protects from accidents, arthritis, intestinal disorders.
Ø Nine faced Rudraksha: It enhances the power, authority, commanding skill, sources of comforts, luxuries and also cures deafness.
Ø Ten faced Rudraksha: It helps in controlling all nine planets and brings good fortune.
Ø Eleven faced Rudraksha: It increases wealth, boosts courage, increases spiritualism and inclination towards religious acts.
Ø Twelve faced Rudraksha: It helps in building foreign collaboration, relations, deals or journeys, enhances name and position.
Ø Thirteen faced Rudraksha: It brings cordial family and marital relations, cures general human body disorders and enhances social network.
Ø Fouteen faced Rudraksha: It increases spiritual power, brings success in all endeavors, increases opportunities of learning and education.
Ø Fifteen faced Rudraksha: It helps in elimination of all obstacles, enhances prosperity and intelligence.
Rudraksha should be worn on the basis of Janma Tithi and Lagna.
For astrological analysis, horoscope designing and purchase of original Rudraksha Contact at:
Shree Shani Dham
Asola, Fatehpur Beri
Mehrauli, New Delhi- 110074
Ph. No. 91-11-26653600 91-11-26653600 , 26654400

नवरात्र का नौवां दिन माँ सिध्दिदात्री

नवरात्र का नौवां दिन माँ सिध्दिदात्री का
सम्पूर्ण सिध्दियों को पूर्ण करने वाली माँ सिध्दिदात्री की उपासना
नवरात्र के नवम् तथा अंतिम दिन समस्त साधनाओं को सिद्ध एवं पूर्ण क रने वाली तथा अष्टसिद्धि नौ निधियों को प्रदान क रने वाली भगवती दुर्गा के नवम् रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी भगवती के अनुसार भगवान शिव ने मां की इसी शक्ति की उपासना क रके सिद्धियां प्राप्ति की थीं। इसके प्रभाव से भगवान का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। उसी समय से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर क हा जाने लगा है। इस रूप की साधना करके साधक गण अपनी साधना सफल करते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के पहले मां सिद्धिदात्री की उपासना अनिवार्य है।
पूजन विधि -
सर्वप्रथम लक ड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित क रें तथा सिद्धिदात्री यंत्र को भी चौकी पर स्थापित करें। तदुपरांत हाथ में लालपुष्प लेक र मां का ध्यान क रें।
ध्यान मंत्र -
सिध्दगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिध्दिदा सिध्दिदायिनी॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ध्यान के बाद हाथ के पुष्प को मां के चरणों में छोड़ दें तथा मां का एवं सिद्धिदात्री का मंत्र का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। देशी घी से बने नैवेद्य का भोग लगाएं तथा मां के नवार्ण मंत्र का इक्कीस हजार की संख्या में जाप क रें। मंत्र के पूर्ण होने के बाद हवन करे तथा पूर्णाहुति करें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा वस्त्र-आभूषण के साथ दक्षिणा देकर परिवार सहित आशीर्वाद प्राप्त क रें। कुंवारी कन्याओं का पूजन करे और भोजन क रायें। वस्त्र पहनायें वस्त्रों में लाल चुनरी अवश्य होना चाहिए क्योंकि मां को लाल चुनरी अधिक प्रिय है। कुंआरी क न्याओं को मां का स्वरूप माना गया है। इसलिए क न्याओं का पूजन अति महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है।
भोग
इस दिन भगवती को धान का लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है।

नवरात्र का आठवां दिन माँ महागौरी

नवरात्र का आठवां दिन माँ महागौरी का

सम्पूर्ण वैवाहिक सुख एवं विवाह शीघ्र प्रदान करने वाली माँ महागौरी की उपासना।

नवरात्र के आठवें दिन मां के आठवें स्वरू प महागौरी क ी उपासना की जाती है इस दिन साधक विशेष तौर पर साधना में मूलाधर से लेकर सहस्रार चक्र तक विधि पूर्वक सफ ल हो गये होते हैं। उनक ी कुं डलिनी जाग्रत हो चुक ी होती हैं तथा अष्टम् दिवस महागौरी क ी उपासना एवं आराधना उनक ी साधना शक्ति क ो और भी बल प्रदान क रती है। मां की चार भुजाएं हैं तथा वे अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण कि ये हुए हैं, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां क ा वाहन वृष है। अपने पूर्व जन्म में मां ने पार्वती रूप में भगवान शंक र क ो पति रू प में प्राप्त क रने के लिए क ठोर तपस्या की थी तथा शिव जी क ो पति स्वरूप प्राप्त कि या था। मां क ी उपासना से मन पसंद जीवन साथी एवं शीघ्र विवाह संपन्न होगा। मां कुं वारी क न्याओं से शीघ्र प्रसन्न होक र उन्हें मन चाहा जीवन साथी प्राप्त होने क ा वरदान देती हैं। इसमें मेरा निजी अनुभव है मैंने अनेक कुं वारी क न्याओं क ो जिनकी वैवाहिक समस्याएं थी उनसे भगवती गौरी की पूजा-अर्चना करवाक र विवाह संपन्न क रवाया है। यदि कि सी के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी क ी साधना क रें, मनोरथ पूर्ण होगा।

पूजन विधि -

सर्वप्रथम लक ड़ी क ी चौक ी पर या मंदिर में महागौरी क ी मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें तदुपरांत चौक ी पर सफेद वस्त्र बिछाक र उस पर महागौरी यंत्र रखें तथा यंत्र क ी स्थापना क रें। मां सौंदर्य प्रदान क रने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेक र मां क ा ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

श्वेते वृषे समारू ढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।

महागौरी शुभम् दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

ध्यान के बाद मां के श्री चरणों में पुष्प अर्पित क रें तथा यंत्र सहित मां भगवती क ा पंचोपचार विधि से अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन क रें तथा दूध से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। तत्पश्चात् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र क ी तथा साथ में ॐ महा गौरी देव्यै नम: मंत्र की इक्क ीस माला जाप क रें तथा मनोक ामना पूर्ति के लिए मां से प्रार्थना क रें। अंत में मां क ी आरती और क ीर्तन क रें।

भोग

इस दिन भगवती को नारियल का भोग लगाना चाहिये। फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार के संताप नहीं आ सकते।


नवरात्र का नौवां दिन माँ सिध्दिदात्री का


सम्पूर्ण सिध्दियों को पूर्ण करने वाली माँ सिध्दिदात्री की उपासना

नवरात्र के नवम् तथा अंतिम दिन समस्त साधनाओं को सिद्ध एवं पूर्ण क रने वाली तथा अष्टसिद्धि नौ निधियों को प्रदान क रने वाली भगवती दुर्गा के नवम् रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी भगवती के अनुसार भगवान शिव ने मां की इसी शक्ति की उपासना क रके सिद्धियां प्राप्ति की थीं। इसके प्रभाव से भगवान का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। उसी समय से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर क हा जाने लगा है। इस रूप की साधना करके साधक गण अपनी साधना सफल करते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के पहले मां सिद्धिदात्री की उपासना अनिवार्य है।

पूजन विधि -

सर्वप्रथम लक ड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित क रें तथा सिद्धिदात्री यंत्र को भी चौकी पर स्थापित करें। तदुपरांत हाथ में लालपुष्प लेक र मां का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

सिध्दगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिध्दिदा सिध्दिदायिनी॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

ध्यान के बाद हाथ के पुष्प को मां के चरणों में छोड़ दें तथा मां का एवं सिद्धिदात्री का मंत्र का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। देशी घी से बने नैवेद्य का भोग लगाएं तथा मां के नवार्ण मंत्र का इक्कीस हजार की संख्या में जाप क रें। मंत्र के पूर्ण होने के बाद हवन करे तथा पूर्णाहुति करें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा वस्त्र-आभूषण के साथ दक्षिणा देकर परिवार सहित आशीर्वाद प्राप्त क रें। कुंवारी कन्याओं का पूजन करे और भोजन क रायें। वस्त्र पहनायें वस्त्रों में लाल चुनरी अवश्य होना चाहिए क्योंकि मां को लाल चुनरी अधिक प्रिय है। कुंआरी क न्याओं को मां का स्वरूप माना गया है। इसलिए क न्याओं का पूजन अति महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है।

भोग

इस दिन भगवती को धान का लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है।

Sunday 21 March 2010

प्यारा लागे तेरा दरबार मां भवानी

बेटा जो बुलाए मां को आना चाहिए। कुछ इसी तर्ज पर असोला फतेहपुर बेरी स्थित पावन श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में चैत्र नवरात्र के उपलक्ष्य में दस विद्या और नौ देवियों का आह्वïान किया जा रहा है। इस पावन पर्व पर १६ से २४ मार्च तक मां के नौ रूपों की अद्ïभुत छटा मंदिर परिसर में बिखर रही है। श्रीश्री १००८ महामंडलेश्वर परमहंस दाती जी महाराज के सान्निध्य में इस पावन पर्र्व के दौैरान चलने वाले मंत्र जाप से श्रद्धालु मां का असीम आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। हर बार की भांति इस वर्र्ष भी हजारों दंपति मंत्र जाप और अनुष्ठïान से जगजननी मां दुर्गा को खुश कर रहे हैं।
श्री सिद्ध शक्ति पीठ शनिधाम में मंत्रोच्चार और पूजन के लिए मां का बड़ा दरबार लगाया गया है अखंड ज्योति व अनवरत मंत्रोच्चार से पूरा वातावरण शक्तिमय दिख रहा है। वैसे तो यहां पर प्रतिवर्ष नवरात्र मंत्रोच्चार जाप का आयोजन किया जाता है लेकिन इस बार विशेष रूप से अनुष्ठïान किया गया है, जो नौ दिन तक चलेगा और अंतिम दिन वृहद यज्ञ के साथ समापन होगा। मंदिर में नौ रूपों में शक्तियों व दस विद्या देवियों की वृहद प्रतिमा के साथ ही दुल्हन की भांति पूरे दरबार को सजाया गया है। हमारे हिंदू धर्म में अनेक देवताओं व देवियों की पूजन व आराधना के लिए हमेशा ही जगह-जगह पर अनुष्ठïान व यज्ञ होते रहते हैं। लेकिन शनिधाम में आयोजित नवरात्र जाप अनुष्ठïान अपने आप में अनूठा है जिसमें पति-पत्नी समान रूप से एक साथ मां की आराधना करते हैं। नौ दुर्गा व दस विद्याओं के पूजन के इन नौ शक्तिदिनों के आयोजन की तैयारी महीनों पूर्व से शुरू हो जाती है।
इस विशेष मंत्रजाप में सम्मिलित होने के लिए महीनों से लोग संपर्क में रहते हैं। सब प्रवेश फार्म भरते हैं, उनकी छटनी की जाती है तथा उनके नामों पर अंतिम संस्तुति श्रीश्री १००८ महामंडलेश्वर परमहंस दाती जी महाराज की होती है। इसके बाद ही इस आयोजन में सम्मिलित होने का शुभ अवसर मिलता है।

नवरात्र का छठा दिन माँ कात्यायनी का


सम्पूर्ण रोग विनाशक, भय से मुक्ति दिलाने वाली माँ कात्यायनी की उपासना।

नवरात्र के पावन समय में छठवें दिन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को प्रदान क रने वाली भगवती कात्यायनी की पूजा वंदना का विधान है। साधक, आराधक जन इस दिन मां का स्मरण क रते हुए अपने मन को आज्ञा चक्र में समाहित क रते हैं। योग साधना में आज्ञा चक्र का बड़ा महत्व होता है। मां की षष्ठम् शक्ति कात्यायनी नाम का रहस्य है। एक कत नाम के ऋ षि थे। उनके पुत्र ऋ षि कात्य हुए इन्हीं कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए उनके कठोर तपस्या के फलस्वरूप उनकी इच्छानुसार भगवती ने उनके यहां पुत्री के रू प में जन्म लिया।

भगवती कात्यायनी ने शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक ऋ षि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और महिषासुर का वध कि या था। इसी कारण छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ा। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत विशाल एवं दिव्य है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ वर मुद्रा में, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में, तीसरे हाथ में सुंदर क मल पुष्प और चौथे हाथ में खड्ग धारण कि ये हुए हैं। मां सिंह पर सवार हैं। जो मनुष्य मन, क र्म, व वचन से मां की उपासना क रते हैं उन्हें मां धन-धान्य से परिपूर्ण एवं भयमुक्त क रती हैं।

साधना विधान -

सबसे पहले मां कात्यायनी की मूर्ति या तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। तदुपरांत चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। दीपक प्रावलित रखें। तदुपरांत हाथ में लाल पुष्प लेक र मां का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

चन्द्रहासोवलक रा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

इसके बाद मां को हाथ में लिए हुए पुष्प अर्पण करें तथा मां का षोडशोपचार से पूजन क रें। नैवेद्य चढ़ाएं तथा 108 की संख्या में मंत्र जाप क रें -

मंत्र -

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

मंत्र की समाप्ति पर मां की प्रार्थना तथा आरती क रें।

भोग

इस दिन देवी के पूजन में मधु का महत्त्व बताया गया है। वह मधु ब्राह्मण अपने उपयोग में ले। इसके प्रभाव से साधक सुन्दर रूप प्राप्त करता है।

Saturday 20 March 2010

कैसे करें माँ कालरात्रि की पूजा


क्या है पूजा? पूजा किसे कहते हैं?

यह सम्पूर्ण विषय श्रध्दा-भाव, भक्ति एवं समर्पण का है। वास्तव में भक्ति ही समर्पण है। भक्त भगवान के लिए ही जीता है। जैसे बांस की बांसुरी स्वत: ही कुछ नहीं गाती है। फिर भी परमात्मा का सुन्दर संगीत उसमें बहता है। बांसूरी तो बांस की पोली नली होती है जो राह देती है, स्थान देती है, रुकावट नहीं देती है फूंक से निकलने वाली हवा के निकलने के मार्ग में। पराशर पुत्र व्यास के अनुसार भगवान की पूजा आदि में अनुराग होना ही भक्ति है। पूजा का अर्थ होता है परमात्मा को प्रतिस्थापित करना सीमा में, आमंत्रण इसलिए कि पूजा का आरम्भ उसके बुलाने से है। अंग्रेजी में एक शब्द है गॉड और उसका जो मूल अर्थ है, जिस मूल धातु में वो पैदा हुआ है, उस मूल धातु का अर्थ है जिसको बुलाया जाता, पुकारा जाता है वही भगवान। दूसरा जिसने कभी पूजा का रहस्य ही नहीं जाना, देखेगा तुम्हें पत्थर की मूर्ति के सामने। समझेगा नासमझ वो। क्या कर रहे हो? परन्तु अब उसे पता ही नहीं है कि अब पत्थर की मूर्ति अब पत्थर की नहीं है। मृणमय अब चिन्मय यानी चेतना येक्त हो गया है क्योंकि भक्त ने पुकारा है। भक्त ने अपनी मजबूरी, अपनी विवशता जाहिर कर दी है। उसने बता दिया है कि मैं मजबूर हूँ। आप जैसा विराट मैं हो नहीं सकता हूँ। आप ही कृपा कर लो ना, मेरे जैसे छोटे हो जाओ। मेरी अड़चनें हैं कि मैं आप जैसा विराट नहीं हो सकता और जब आप छोटे हो जाओगे, तो मैं आपसे बात कर सकूं, आपसे गुफ्तगू कर सकूं। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। इसलिए मूर्ति को देखना है तो भक्त की ऑंख से देखना। और जब परिपूर्ण हृदय से भगवान को पुकारा जाता है, तो मिट्टी खाली नहीं उससे और पत्थर भी बाहर नहीं उससे। जब कोई हृदय से पुकारता है तो तुरंत उसका आविर्भाव हो जाता है।

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।

हजारो साल से नरगिश अपनी बेनूरी पर रोती है॥

मूर्ति तो झरोखा है, वहाँ से हम विराट में झांकते हैं।

जब भक्त का हृदय बुलाता तो वह खुल जाती है॥

भक्त की ऑंख चाहिए।



माँ कालरात्रि की अवतरण गाथा

दैत्यों के राजा निशुम्भ-शुम्भ नामक दो भाई थे। उन्हीं के सेना नायक थे, रक्तबीज, महिसासुर, चण्डमुण्ड व धूम्रलोचन इन सबका विनाश करने के लिए माँ दुर्गा ने युध्द के मध्य में अपनी सहायता के लिए अपनी ललाट से एक शक्तिशाली और विशाल शक्ति को उत्पन्न किया जो कालरात्रि, कालिका, महाकाली, चामुण्डा अनेकों नाम से जानी जाती है। जब माँ भगवती ने शुम्भ-निशुम्भ के सेनापति धूम्रलोचन को यमपुरी पहुंचा दिया तब दैत्यराज शुम्भ ने चण्ड-मुण्ड को आदेश दिया कि देवी को बांध कर मेरे पास लाओ। आज्ञा पाते ही दैत्यों ने माँ जगदम्बा को चारों तरफ से घेर लिया। उन्हें पकड़ने लगे। उन्हें मारने की चेष्टा करने लगे। इस अवस्था को देख माँ दुर्गा को बहुत ही क्रोध आया और क्रोध की इस अवस्था में माँ के भ्रूमध्य यानी भौंहों के बीच से अत्यंत विराट रूप वाली काली नामक देवी प्रकट हुई। अत्यंत शक्तिशाली, विकराल रूप के बाद भी हड्डियों का ढांचा थी। अस्थि-पंजर नजर आता था। यह है माँ के अवतरण की गाथा।

द्वादश राशि के लोग कैसे करें माँ कालरात्रि की पूजा कि धन की प्राप्ति हो

मेष राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के प्रत्येक पत्ते पर 'क्रीं' लिखें। साथ ही 108 गुलाब के फुलों की माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों माला को रख दें। एक माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: और एक माला ॐ शं शनैश्चराय नम: का जाप तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन से गुड़ से पकवान तथा सरसों के तेल में पूड़ी व चना बना कर प्रसाद चढ़ाएं, फिर बांटे।

वृष राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के पत्तों पर 'ह्रीं' बीज मंत्र लिखें। और कलावा के धागे से इसकी माला बना लें। साथ ही सफेद धागे में 108 मोगरे के फुल या जवा कुसुम की माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों माला को रख दें। घी का दीपक जलाएं। एक माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: की और एक माला शनिपत्नी नामस्तुति की करें। तत्पश्चात माँ कालरात्रि के गले में यह माला समर्पित कर दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन 7 नारियल गोला अपने ऊपर वार कर शनिदेव के चरणों में चढ़ाएं फिर बांटे।

मिथुन राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के पत्तों पर 'ऐं नम: क्रीं क्रीं कालिकाय स्वाहा' बीज मंत्र लिखें और कलावा के धागे से इसकी माला बना लें। साथ ही हरे धागे में 108 इलायची की माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों माला को रख दें। घी का दीपक जलाएं। एक माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: की और एक माला कल्याणकारी शनि मंत्र सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु मे शनि: का जाप करें। तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन सूर्योदय से पूर्व ही स्नान कर पीपल के पेड़ में गुड़ डाल कर मीठा जल पश्चिम दिशा में मुख करके चढ़ायें तथा सरसां तेल का दीया जलाएं।

कर्क राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के पत्तों पर 'क्रीं क्रीं क्रीं' बीज मंत्र लिखें और कलावा के धागे से इसकी माला बना लें। साथ ही सफेद गुंजा (चिरमटी) की 108 दाने की माला बनाकर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों माला को रख दें। घी का दीपक जलाएं। एक माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का जाप और एक माला ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: का जाप करें। तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन 9 बादाम श्री शनिदेव के श्रीचरणों पर चढ़ाएं फिर गरीब और जरूरतमंद लोगों श्रद्धानुसार चावल का दान दें।

सिंह राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के पत्तों पर 'क्रीं स्वाहा' बीज मंत्र लिखें और कलावा के धागे से इसकी माला बना लें। साथ ही 108 गुलाब के फूलों की माला बनाकर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों माला को रख दें। घी का दीपक जलाएं। एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ú कालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का और एक माला मंगलकारी शनि मंत्र नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं, छायामार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम॥ का जाप करें। तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन बाधा निवारण हेतु पीपल पर नारियल फोड़कर वहीं छोड़ दें व चौमुखा तेल का दीपक जलाएं।

कन्या राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के पत्तों पर 'क्रीं क्रीं फट् स्वाहा' बीज मंत्र लिखें और कलावा के धागे से इसकी माला बना लें। साथ ही हरे धागे में 108 इलायची की माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य और अक्षत अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ú क ालरात्रि देव्यै नम: का और एक माला जाप कल्याणकारी शनि मंत्र सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: करें। तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन सूर्योदय से पूर्व ही स्नान कर पीपल के पेड़ के नीचे हरे कपड़े में सात मुठ्ठी साबुत उड़द बांधकर अपने ऊपर से सात बार उसार कर रख दें। सात परिक्रमा करें और सरसाें के तेल का दीपक जलाएं।

तुला राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के पत्तों पर 'ऐं' बीज मंत्र लिखें। साथ ही सफेद धागे में 108 गुड़हल के फुल या जवा कुसूम की माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य व अक्षत आदि अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ú क ालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का और एक माला जाप ॐ शं शनैश्चराय नम:। कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु, कृष्णौ, रोद्रान्तको, यम:। सौरि शनैश्चरा, मंद, पिप्पलादेन, संस्थित:॥ ॐ शं शनैश्चराय नम:। मंत्र का करें। तत्पश्चात माँ कालरात्रि के गले में यह माला समर्पित कर दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन 11 साबुत सुपारी, 11 कौड़ी एवं पानी वाले नारियल पर सफेद कपड़ा लपेटकर अपने ऊपर से सात बार उसार कर मां काली के श्रीचरणों में चढ़ा दें।

वृश्चिक राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के प्रत्येक पत्ते पर 'क्रीं हूं ह्रीं स्वाहा' लिखें। साथ ही 108 लाल कनेर के फूलों की माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य व अक्षत अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का और एक माला जाप ॐ शं शनैश्चराय नम: का करें तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें, या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन से गुड़ से पकवान तथा सरसों के तेल में पूड़ी व चना बना कर प्रसाद चढ़ाएं, फिर बांटे और श्रद्धानुसार साबुत मसूर सफाई कर्मचारी को दान में दे दें।

धनु राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के प्रत्येक पत्ते पर 'क्रीं हूं ह्रीं स्वाहा' लिखें। साथ ही कनेर 108 पीले फूल पीले धागे में माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य अक्षत अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का और एक माला शनि गायत्री का जाप करें तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन काले कपड़े में 7 मुठ्ठी उड़द, सात लौंग, 7 काली मिर्च बांधकर अपने ऊपर से सात बार उसार कर के श्रीशनिदेव के श्रीचरणों में चढ़ा दें। सरसों के तेल में मौली से बनी बत्ती का दीया जलाएं एवं श्री शनि मंदिर में श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें।

मकर राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के प्रत्येक पत्ते पर 'क्रीं हूं ह्रीं' लिखें। साथ ही 108 नीले फूल और नीले फूल न मिलने पर गुलाब की माला काले धागे में बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य अक्षत अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का और एक माला शनि गायत्री ॐ भगभगाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनि: प्रचोदयात्। का जाप करें तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन उड़द के आटे के पकवान बनाकर कौओं और कुत्तों को भोजन अवश्य दें।

कुम्भ राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के प्रत्येक पत्ते पर 'क्रीं हूं ह्रीं स्वाहा' लिखें। साथ ही 108 नीले फूल की माला काले धागे में बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य व अक्षत अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: मंत्र का और एक माला शनि गायत्री का जाप करें तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन अपने वजन के बराबर उड़द दाल की खिचड़ी बनाकर उसमें गुड़ डालकर गायो को खिलायें।



मीन राशि -

कुमकुम, चंदन और केसर को घोल कर अनार की लकड़ी की कलम से 108 बेलपत्र के प्रत्येक पत्ते पर 'क्रीं ह्रीं ह्रीं कालिका स्वाहा' लिखें। साथ ही कनेर 108 पीले फूल पीले धागे में माला बना कर इस समस्त पूजा सामग्री को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर पवित्र थाली में इन दोनों मालाओं को रख दें। घी का दीपक जलाएं। धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य, अक्षत आदि अर्पित करें। शुध्द आसन बिछाकर एक माला जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: और एक माला शनि गायत्री का जाप तत्पश्चात इन मालाओं को माँ कालरात्रि के चरणों में समर्पित कर दें, या श्रध्दापूर्वक गले में पहना दें तो कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।

आज का विशेष उपाय

आज के दिन अपने वजन के बराबर या श्रद्धानुसार बेसन के लड्डू कुत्ते और गाय को खिलाना अति लाभदायक रहेगा।

नवरात्र का पांचवां दिन माँ स्कंदमाता का


ग्रह कलह निवारण करने वाली माँ स्कंदमाता की उपासना।

नवरात्र के पुण्य पर्व पर पांचवें दिन मां स्कं द माता की पूजा, अर्चना एवं साधना का विधान वर्णित है। मां के पांचवें स्वरूप को स्कं द माता के नाम से जाना जाता है। पांचवें दिन की पूजा साधना में साधक अपने मन-मस्तिष्क को विशुद्ध चक्र में स्थित क रते हैं। स्कंद माता स्वरू पिणी भगवती की चार भुजाएं हैं। सिंहारूढ़ा मां पूर्णत: शुभ हैं। साधक मां की आराधना में निरत रहक र निर्मल चैतन्य रूप की ओर अग्रसर होता है। उसका मन भौतिक काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) से मुक्ति प्राप्त क रता है तथा पद्मासना मां के श्री चरण क मलों में समाहित हो जाता है। मां की उपासना से मन की सारी कु ण्ठा जीवन-क लह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।

मां की उपासना के साथ ही भगवान स्कं द की उपासना स्वयं ही पूर्ण हो जाती है। क्योंकि भगवान बालस्वरू प में सदा ही अपनी मां की गोद में विराजमान रहते हैं। भवसागर के दु:खों से छुटकारा पाने के लिए इससे दूसरा सुलभ साधन कोई नहीं है।

पूजन विधि -

सर्व प्रथम मां स्कं द माता की मूर्ति अथवा तस्वीर को लक ड़ी की चौकी पर पीले वस्त्र को बिछाक र उस पर कुं कुं म से ॐ लिखक र स्थापित करें। मनोकामना की पूर्णता के लिए चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। हाथ में पीले पुष्प लेक र मां स्कं द माता के दिव्य ज्योति स्वरूप का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कं द माता यशस्विनी॥

ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर छोड़ दें। तदुपरांत यंत्र तथा मनोकामना गुटिका सहित मां का पंचोपचार विधि द्वारा पूजन क रें। पीले नैवेद्य का भोग लगाएं तथा पीले फ ल चढ़ाएं। इसके बाद मां के श्री चरणों में प्रार्थना क र आरती पुष्पांजली समर्पित क रें तथा भजन कीर्तन क रें।

भोग

इस दिन पूजा करके भगवती को केले का भोग लगाये और वह प्रसाद ब्राह्मण को दे दें, ऐसा करने से पुरुष की बुद्धि का विकास होता है।

Friday 19 March 2010

MAHAMANDLESHWER DAATI MAHARAJ SHREE SHANIDHAM

SHREE SHREE 1008 MAHAMANDLESHWER DAATI MAHARAJ JI

Heartiest greetings to whole nation on occasion of Navratra and Nav Sanvatsar 2067

On 16th March, Tuesday new year called Shobhan Navsamvat is beginning under Sagittarius sign as Lagna or ascendant. In the beginning of new year afflicted Rahu in lagna and Lord of lagna Jupiter in third house under Aquarius sign are transiting. Jupiter and Mars are under Shadashtaka Yoga, Saturn under Virgo sign, Sun, Mercury, Moon and Venus under Pisces sign, Mars under Cancer sign Ketu under Gemini sign are transiting. This year is showing significant impact on whole country. Developed and developing countries will be in competition of multiplying arms. Variations are indicated in political front, Establishment of new political socialist basis. Bitterness will creep in relations between India and neighboring countries. Placement of stars is reflecting ebb and flow in political front. Country will have to confront terrorism and violence. Encounter of epidemic and excessive rains, Indication of natural calamities, land slide and accidents. The lord of this year Mars and diplomat Mercury is reflecting riots, conflagration, conflictions and rise in prices of daily essentials. Due to Jupiter and Saturn under Shadashtak Yoga, Mars and Jupiter under Shadashtak Yoga, Mars and Rahu under Shadashtak Yoga, Sun, Moon, Mercury, Venus and Saturn under Samsaptak Yoga are not indicating good signs in aspect of safety and security. Country may have to face immaterial troubles. But despite of troubles there is surplus of income sources and steady economic status, Conflictions between Government and opponents. Opponents will be fractional. Few constituents of Government will unite with opponents and create obstacles. Government will have to again contemplate over foreign policy, Lack of cooperation from foreign countries. Neighboring countries will tend to create disturbance and infiltration but they will defeat in their attempts. Neighboring countries will have to repent for their mistake. However it needs to stay alert on border line. This year is good for advancement of academics and education. More impact and success in technical and medical field, Industries will show elevated growth. Labor class people will show dissatisfaction. Productive rate will be high, Expansion of Business, Poor communication and policies with foreign countries, Growth and development in religious communalism, Promotion of casteism.

Government will fail to please associates. It can have a bad impact on growth of country. Elevated growth in business of export and import but few mischievous and mediator elements will cause negative impact on export and import. Government needs to pay attention.

This year is moderate. Significant growth will get influenced due to poor coalitions. Followed are the predictions for natives of twelve varied signs.

ARIES:

This year is fortunate and prosperous for natives of this sign in aspect of job and profession. Elimination of business obstacles, new business deals, for employed ones this year is fortunate, steady and sturdy economic status, well placed stars are indicating consistent success, In latter part of year confront of obstacles due to emotions of ego and obstinacy, avoid sluggishness and lethargy otherwise may miss good opportunities, Take advice of elders while making important decisions related to business or family, it may need special efforts to keep concordance in marital relations otherwise there will be plentiful support of spouse throughout the year but it needs to keep cordial relations. Despite of all fortunate happenings this year is not good from health aspect.

TAURUS:

This year is more promising and successful in comparison to last year but due to evil effects of stars confront of ebb and flow especially in business aspect. Fluctuations in business till month of May, it may need hard work and efforts to gain significant results, New avenues of growth will be available after month of May, deals of partnership will meet expectations, recovery of loans, those who are employed their boss will be very much pleased by work, transfer to place of choice, chances for promotion and growth, this year is not fortunate from family aspect, difference of opinion and conflictions with spouse but it will not extend for long. Natives of this sign need to be cautious of health in latter part of the year. There are chances of accidents and injuries.

GEMINI:

This year is moderate for natives of this sign. It needs hard work and efforts especially in business aspect. Cloud of obstacles in business front, conflictions with associates, slog and toil, immaterial mental distress, confront of troubles in first half of year, difficulties will stir up in financial matters therefore think well before spending money, extravagance of money can raise troubles, dissipation of worries and new income sources will be available after month of May, for employed ones results in this year will meet expectations, It needs special care and attention in business front. Think well before making money investments, stay away from property disputes, This year is not good from family aspect. Willingly also you will not be able to keep concordant family relations, bitter marital relations, health of father will cause worry.

CANCER:

This year is signing in with good news for natives of this sign. Lord Saturn is showering blessings on natives of this sign. Bubble of new inspiration and enthusiasm in business front, accomplishment of pending jobs, business expansion, steady business affiliations, new income sources, confront of obstacles in first part of year, restless and discontented state of mind but this time period will sustain for short duration, no need to worry, stars are in your favor, results will meet expectations, Jupiter in eighth house is indicating high expenses but on virtuous deeds, new job opportunities for unemployed, chances of promotion for employed ones, chances to get transferred to place of choice, this year is not indicating major problems in job and profession, bulge of new duties and responsibilities, influence and rights will increase at working place, expansion of income sources, name and fame in society, laid efforts and hard work will reap expected results and success.


LEO:

This year is full of ups and downs for natives of this sign. Economic success will meet heights, high name and position in society, affiliations with dignitaries, each wish made and dreams seen in preceding years will come true and actualize in new year, steady economic status, new sources of income, strong chances of purchase of land or vehicle, remarkable success in business, Month July will bring outstanding results in business front. Enemies will defeat in their plot. This year is indicating good signs for employed ones. Affable communication skills will make them meet all heights of success. Many may advise you that you are running under transit period of Saturn, Jupiter is placed in eighth house. But both conjunction of planets is success giving. Lord Shani and Jupiter will protect and save you on every corner of life. On one hand there is boost of economic and personal valor other hand it needs to stay alert and warned in family matters. This year you may confront family disputes and conflictions.

VIRGO:

This year is indicating mixed results for natives of this sign. On one hand there is dissipation of financial worries other hand Lord Jupiter will provide sufficient amount of income for fulfillment of daily needs. Cordial relations with friends, new sources of income, settlement of legal matters, confront of mental and social troubles, plentiful support of associates for employed ones, chances for promotion and salary hike, transfer to place of choice, those who are in business should make money investments after month of May, time period after month of May is auspicious for any changes in business and occupation, Months June, July and August are quite benedictory and success giving from business aspect, Months May and September needs special attention and care from health aspect.

LIBRA:

This year is fortunate for natives of this sign. Business growth will meet all heights, business expansion will meet expectations, new vision and insight from business aspect, rectified economic status, swell in money reserves, new job opportunities, planetary position during this year is reflecting prosperity, bliss and harmony. Whole year will bring new energy, enthusiasm, vitality and freshness, promotion of social coalitions, amiable social relations will speed up business growth, Planets Rahu and Jupiter will bestow favorable results, for employed ones efforts will reap amiable results, chances for promotion and growth, prominence of prosperity and peace but abstain from flattery, Months May, June, October, November and December are benedictory from business aspect, these months are auspicious for making money investments, from health aspect this year is indicating ebb and flow, intake of intoxicating substances will bring harmful effects, this year may bring immaterial mental and physical distress.

SCORPIO:

This year is fortunate for natives of this sign. By the grace of Lord Shani and Jupiter natives of this sign will get new sources of income, steady economic status, new opportunities for business expansion, new business affiliations but due to retrograde Mars in the beginning of new year is indicating cloud of obstacles, placement of ketu is reflecting high money expenses, this year is fortunate for students from education aspect but first four months of year need extra efforts and hard work rest of the time period is favorable, keep concordant family relations.



SAGITTARIUS:

This year is moderate for natives of this sign. Month May needs extra care and attention. From business aspect this year is fortunate, cooperation of family members will make success in business front, pending jobs will get easy access, elimination of business obstacles, after hard efforts you will be able to get sufficient sources of income, Month May is not feasible for making money investments, after month of May only business troubles will find solution, time period is auspicious for employed ones, new growth prospects, boost in courage and confidence, decisions taken by you will be appreciable, compatible relations with associates and govt. officials, Months April, July, August and November need extra care and attention in business front, time period after month of May is not auspicious for making money investments, First half of year is not amiable from family aspect but latter half year is fortune bringing from family aspect, blessings from parents, cordial relations with elders and youngsters, cease of difference of opinion with spouse, prosperity and peace at home.

CAPRICORN:

This year is fortunate for natives of this sign. Retrograde Rahu is transiting in twelfth house due to which there is confront of obstacles in business, health and family front. Jupiter placed under Aquarius sign is indicating elimination of preceding problems, favorable changes in business, money investments in business will thrive, new business affiliations, new income sources, steady economic status, time period is fortunate from aspect of job and profession, new avenues for success and growth, mount of new responsibilities, boost in courage and valor, gain of honor and position, wishes will come true, new achievements.

AQUARIUS:

This year is indicating ups and downs for natives of this sign, Time period up till 30th May is not auspicious, avoid money investments till month of May and stay vigilant towards business front, any changes in business and occupation is not advised, expenses may exceed earnings, improved time period after month of May, efforts will reap success, sufficient sources of income, financial straits therefore think well before expenditure, avoid business expansion or changes without advice of elders, stay vigilant while financial transactions, If you are running business stocks or shares you may get deceived, time period is fortunate for employed ones, time period is favorable from aspect of job and profession, settlement of legal matters, boss will be pleased by work, solution to official troubles, efforts will reap success, minor efforts will bring major success in job front.

PISCES:

This year is moderate for natives of this sign. Efforts laid in business front will reap success, fulfillment of family needs, If major gains are not seen in one hand than on other hand major losses are also not foreseen. Time period between January and July is favorable from financial aspect but avoid any changes in business, abstain from money lending or borrowing, pay all attention on current business and occupation, don’t rely on others, refrain from money investment, ups and downs are foreseen in job and profession, uneven results in job and profession, stay alert and vigilant while making any changes in job and profession because expectations may not turn true, if you wish can undertake foreign travel related to job or profession, success is assured but stay vigilant towards maintaining documents and ledgers, trusted friend can deceive, rest of the time period is fortunate.

मां शैलपुत्री





मां शैलपुत्री

साधना विधि -

सबसे पहले मां शैलपुत्री की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचें लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केशर से 'शं' लिखें और उसके ऊ पर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है -

ॐ ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री दैव्यै नम:

वंदे वांछित लाभाय चद्रार्धकृत शेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनाकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। तत्पश्चात् मनोकामना गुटिका का पंचोपचार द्वारा पूजन करें। दीप प्रावलित करके ही पूजन करें। यदि संभव हो तो नौ दिनों तक अखण्ड ज्योति जलाने का विशेष महत्व होत है। इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। संख्या 108 होनी चाहिए। मंत्र - ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से आरती कीर्तन करें।

भोग

नवरात्र का पहला दिन माँ शैलपुत्री का- इस दिन भगवती जगदम्बा की गोघृत से पूजा होनी चाहिये अर्थात् षोडशोपचार से पूजन करके नैवेद्य के रूप में उन्हें गाय का घृत अर्पण करना चाहिये एवं फिर वह घृत ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इसके फलस्वरूप मनुष्य कभी रोगी नहीं हो सकता।

दु:ख-दारिद्र निवारण करती माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।

नवरात्र के दूसरे दिन भगवती मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, अर्चना का विधान है। साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। ब्रह्म शब्द का तात्पर्य (तपस्या)। ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तप का आचरण करने वाली ब्रह्म-चारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय एवं महान है। मां के दाहिने हाथ में जप माला एवं बायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता है। अपने पूर्व जन्म में वे हिमालय (पर्वतराज) के घर कन्या रूप में प्रकट हुई थीं। तब इन्होंने देवर्षि नारद जी के उपदेशानुसार कठिन तपस्या करके भगवान शंकर को अपने पति के रू प में प्राप्त किया था। माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनोरथ सिद्धि, विजय एवं नीरोगता की प्राप्ति होती है तथा मां के निर्मल स्वरूप के दर्शन प्राप्त होते हैं। प्रेम युक्त की गयी भक्ति से साधक का सर्व प्रकार से दु:ख-दारिद्र का विनाश एवं सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


पूजन विधि -

मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या तस्वीर को लकड़ी के पट्टे पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें और उस पर हल्दी से रंगे हुए पीले चावल की ढेरी लगाकर उसके ऊपर हकीक पत्थर की 108 मनकों की माला रखें। परिवार या व्यक्ति विशेष के आरोग्य के लिए एवं अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु मनोकामना गुटिका रखकर हाथ में लाल पुष्प लेकर मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र -

दधना करपद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥



मनोकामना गुटिका पर पुष्पांजलि अर्पित कर उसका पंचोपचार विधि से पूजन करें। तदुपरान्त दूध से निर्मित नैवेद्य मां ब्रह्मचारिणी को अर्पित करें। देशी घी से दीप प्रावलित रहे। हकीक की माला से 108 बार मंत्र का जाप करें - 'ॐ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नम:' मन्त्र पूर्ण होने पर मां से अपने अभीष्ट के लिए पूर्ण भक्ति भाव से प्रार्थना करें। तदुपरान्त मां की आरती करें तथा कीर्तन करें।

भोग

नवरात्र का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी का - इस दिन पूजन करके भगवती जगदम्बा को चीनी का भोग लगावे और ब्राह्मण को दे दें। यों करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।

नवरात्र का तीसरा दिन माँ चंद्रघण्टा का

ॐ चन्द्रघण्टा देव्यै नम:

सम्पूर्ण कष्ट निवारण, बाधा निवारण, बाधा विनाशक माँ चंद्रघण्टा की उपासना।


नवरात्र के तीसरे दिन भगवती मां दुर्गा की तीसरी शक्ति भगवती चन्द्र घंटा की उपासना की जाती है। मां का यह रू प पाप- ताप एवं समस्त विघ् बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और परम शांति दायक एवं कल्याणकारी है। मां के मस्तक में घंटे की भांति अर्घचन्द्र सुशोभित है। इसीलिए मां को चन्द्र घंटा कहते हैं। कंचन की तरह कांति वाली भगवती की दश विशाल भुजाएं है। दशों भुजाओं में खड्ग, वाण, तलवार, चक्र , गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र शोभायमान हैं। मां सिंह पर सवार होकर मानो युद्ध के लिए उद्यत दिखती हैं। मां की घंटे की तरह प्रचण्ड ध्वनि से असुर सदैव भयभीत रहते हैं। तीसरे दिन की पूजा अर्चना में मां चन्द्र घंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। उस समय मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। साधक के समस्त पाप-बंधन छूट जाते हैं। प्रेत बाधा आदि समस्याओं से भी मां साधक क ी रक्षा क रती हैं।


पूजन विधि -

सबसे पहले मां चन्द्रघंटा क ी मूर्ति अथवा तस्वीर क ा लक ड़ी क ी चौक ी पर लाल वस्त्र बिछाक र श्री दुर्गा यन्त्र के साथ स्थापित क रें तथा हाथ में लाल पुष्प लेक र मां चन्द्र घंटा क ा ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

प्रिण्डजप्रवरारू ढा चण्डक ोपास्त्रकै र्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

ध्यान के बाद हाथ में लिए हुए पुष्प मां क ी तस्वीर पर अर्पण क रें तथा अपनी मनोक ामना क ी पूर्ति के लिए मां के 108 बार मंत्र जाप करें। मंत्र इस प्रक ार है - ॐ चं चन्द्रघण्टाय हुं ॥ ध्यान रहे, मंत्र जाप से पहिले मां क ा तथा दुर्गा यंत्र सहित अखण्ड ज्योति क ा पंचोपचार विधि से पूजन क रें। लाल पुष्प चढ़ायें तथा लाल नैवेद्य क ा भोग लगायें। मन्त्र पूर्ण होने पर मां क ी प्रार्थना क रें तथा भजन क ीर्तन के बाद आरती क रें।

भोग

भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होती चाहिये एवं पूजन के उपरान्त वह दूध किसी ब्राह्मण को दे देना उचित है। यह सम्पूर्ण दु:खों से मुक्त होने का एक परम साधन है।

नवरात्र का तीसरा दिन माँ चंद्रघण्टा का

सम्पूर्ण कष्ट निवारण, बाधा निवारण, बाधा विनाशक माँ चंद्रघण्टा की उपासना।


नवरात्र के तीसरे दिन भगवती मां दुर्गा की तीसरी शक्ति भगवती चन्द्र घंटा की उपासना की जाती है। मां का यह रू प पाप- ताप एवं समस्त विघ् बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और परम शांति दायक एवं कल्याणकारी है। मां के मस्तक में घंटे की भांति अर्घचन्द्र सुशोभित है। इसीलिए मां को चन्द्र घंटा कहते हैं। कंचन की तरह कांति वाली भगवती की दश विशाल भुजाएं है। दशों भुजाओं में खड्ग, वाण, तलवार, चक्र , गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र शोभायमान हैं। मां सिंह पर सवार होकर मानो युद्ध के लिए उद्यत दिखती हैं। मां की घंटे की तरह प्रचण्ड ध्वनि से असुर सदैव भयभीत रहते हैं। तीसरे दिन की पूजा अर्चना में मां चन्द्र घंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। उस समय मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। साधक के समस्त पाप-बंधन छूट जाते हैं। प्रेत बाधा आदि समस्याओं से भी मां साधक क ी रक्षा क रती हैं।


पूजन विधि -

सबसे पहले मां चन्द्रघंटा क ी मूर्ति अथवा तस्वीर क ा लक ड़ी क ी चौक ी पर लाल वस्त्र बिछाक र श्री दुर्गा यन्त्र के साथ स्थापित क रें तथा हाथ में लाल पुष्प लेक र मां चन्द्र घंटा क ा ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

प्रिण्डजप्रवरारू ढा चण्डक ोपास्त्रकै र्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

ध्यान के बाद हाथ में लिए हुए पुष्प मां क ी तस्वीर पर अर्पण क रें तथा अपनी मनोक ामना क ी पूर्ति के लिए मां के 108 बार मंत्र जाप करें। मंत्र इस प्रक ार है - ॐ चं चन्द्रघण्टाय हुं ॥ ध्यान रहे, मंत्र जाप से पहिले मां क ा तथा दुर्गा यंत्र सहित अखण्ड ज्योति क ा पंचोपचार विधि से पूजन क रें। लाल पुष्प चढ़ायें तथा लाल नैवेद्य क ा भोग लगायें। मन्त्र पूर्ण होने पर मां क ी प्रार्थना क रें तथा भजन क ीर्तन के बाद आरती क रें।

भोग

भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होती चाहिये एवं पूजन के उपरान्त वह दूध किसी ब्राह्मण को दे देना उचित है। यह सम्पूर्ण दु:खों से मुक्त होने का एक परम साधन है।

नवरात्र का चौथा दिन माँ कू ष्माण्डा का

आयु, यश, बल व ऐश्वर्य प्रदान करने वाली माँ कूष्माण्डा की उपासना।

नवरात्र के चौथे दिन आयु, यश, बल व ऐश्वर्य को प्रदान क रने वाली भगवती कू ष्माण्डा की उपासना-आराधना का विधान है। इस दिन साधकजन अपने मन को अनाहत चक्र में स्थित क रके मां कू ष्मांडा की कृपा प्राप्त क रते हैं। मां सृष्टि की आदि स्वरू पा तथा आदि शक्ति हैं। मां के इसी रू प ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण मां को कू ष्मांडा क हा गया है। मां का निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दशों दिशाएं प्रकाशित हैं। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब भगवती कू ष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इनकी आठ भुजाएं हैं। उनके सात भुजाओं में - कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प क लश चक्र एवं गदा शोभायमान हैं। आठवें हाथ में जप की माला है जो अष्ट सिद्धि एवं नौ निधियों को देने वाली है। मां भगवती सिंह पर सवार हैं और इनको कुम्हड़ों की बलि अत्यन्त प्रिय है। मां पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव से की गई साधना से तुरंत प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण क रती हैं तथा हर प्रकार से मंगल क रती हैं।

पूजन विधि

सर्वप्रथम मां कू ष्मांडा की मूर्ति अथवा तस्वीर को चौकी पर दुर्गा यंत्र के साथ स्थापित करें इस यंत्र के नीच चौकी पर पीला वस्त्र बिछायें। अपने मनोरथ के लिए मनोकामना गुटिका यंत्र के साथ रखें। दीप प्रज्वलित क रें तथा हाथ में पीलें पुष्प लेक र मां कूष्मांडा का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

सुरा सम्पूर्ण क लशं रू धिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर अर्पण करें तथा भगवती कूष्मांडा और यंत्र का पंचोपचार विधि से पूजन करें और पीले फल अथवा पीले मिष्ठान का भोग लगायें। इसके बाद मां का 108 बार मंत्र जाप क रें - ॐ क्रीं कू ष्मांडायै क्रीं ॐ । इसके बाद मां की प्रार्थना करें। कुम्हड़े की बलि भी दे सकते हैं तथा मां की आरती, कीर्तन आदि क रें।

भोग

इस दिन मालपूआ का नैवेद्य अर्पण किया जाय और फिर वह योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाय। इस अपूर्व दानमात्र से ही किसी प्रकार के विघ् सामने नहीं आ सकते।

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