Friday 19 March 2010

मां शैलपुत्री





मां शैलपुत्री

साधना विधि -

सबसे पहले मां शैलपुत्री की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचें लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केशर से 'शं' लिखें और उसके ऊ पर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है -

ॐ ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री दैव्यै नम:

वंदे वांछित लाभाय चद्रार्धकृत शेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनाकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। तत्पश्चात् मनोकामना गुटिका का पंचोपचार द्वारा पूजन करें। दीप प्रावलित करके ही पूजन करें। यदि संभव हो तो नौ दिनों तक अखण्ड ज्योति जलाने का विशेष महत्व होत है। इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। संख्या 108 होनी चाहिए। मंत्र - ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से आरती कीर्तन करें।

भोग

नवरात्र का पहला दिन माँ शैलपुत्री का- इस दिन भगवती जगदम्बा की गोघृत से पूजा होनी चाहिये अर्थात् षोडशोपचार से पूजन करके नैवेद्य के रूप में उन्हें गाय का घृत अर्पण करना चाहिये एवं फिर वह घृत ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इसके फलस्वरूप मनुष्य कभी रोगी नहीं हो सकता।

दु:ख-दारिद्र निवारण करती माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।

नवरात्र के दूसरे दिन भगवती मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, अर्चना का विधान है। साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। ब्रह्म शब्द का तात्पर्य (तपस्या)। ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तप का आचरण करने वाली ब्रह्म-चारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय एवं महान है। मां के दाहिने हाथ में जप माला एवं बायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता है। अपने पूर्व जन्म में वे हिमालय (पर्वतराज) के घर कन्या रूप में प्रकट हुई थीं। तब इन्होंने देवर्षि नारद जी के उपदेशानुसार कठिन तपस्या करके भगवान शंकर को अपने पति के रू प में प्राप्त किया था। माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनोरथ सिद्धि, विजय एवं नीरोगता की प्राप्ति होती है तथा मां के निर्मल स्वरूप के दर्शन प्राप्त होते हैं। प्रेम युक्त की गयी भक्ति से साधक का सर्व प्रकार से दु:ख-दारिद्र का विनाश एवं सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


पूजन विधि -

मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या तस्वीर को लकड़ी के पट्टे पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें और उस पर हल्दी से रंगे हुए पीले चावल की ढेरी लगाकर उसके ऊपर हकीक पत्थर की 108 मनकों की माला रखें। परिवार या व्यक्ति विशेष के आरोग्य के लिए एवं अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु मनोकामना गुटिका रखकर हाथ में लाल पुष्प लेकर मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र -

दधना करपद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥



मनोकामना गुटिका पर पुष्पांजलि अर्पित कर उसका पंचोपचार विधि से पूजन करें। तदुपरान्त दूध से निर्मित नैवेद्य मां ब्रह्मचारिणी को अर्पित करें। देशी घी से दीप प्रावलित रहे। हकीक की माला से 108 बार मंत्र का जाप करें - 'ॐ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नम:' मन्त्र पूर्ण होने पर मां से अपने अभीष्ट के लिए पूर्ण भक्ति भाव से प्रार्थना करें। तदुपरान्त मां की आरती करें तथा कीर्तन करें।

भोग

नवरात्र का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी का - इस दिन पूजन करके भगवती जगदम्बा को चीनी का भोग लगावे और ब्राह्मण को दे दें। यों करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।

नवरात्र का तीसरा दिन माँ चंद्रघण्टा का

ॐ चन्द्रघण्टा देव्यै नम:

सम्पूर्ण कष्ट निवारण, बाधा निवारण, बाधा विनाशक माँ चंद्रघण्टा की उपासना।


नवरात्र के तीसरे दिन भगवती मां दुर्गा की तीसरी शक्ति भगवती चन्द्र घंटा की उपासना की जाती है। मां का यह रू प पाप- ताप एवं समस्त विघ् बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और परम शांति दायक एवं कल्याणकारी है। मां के मस्तक में घंटे की भांति अर्घचन्द्र सुशोभित है। इसीलिए मां को चन्द्र घंटा कहते हैं। कंचन की तरह कांति वाली भगवती की दश विशाल भुजाएं है। दशों भुजाओं में खड्ग, वाण, तलवार, चक्र , गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र शोभायमान हैं। मां सिंह पर सवार होकर मानो युद्ध के लिए उद्यत दिखती हैं। मां की घंटे की तरह प्रचण्ड ध्वनि से असुर सदैव भयभीत रहते हैं। तीसरे दिन की पूजा अर्चना में मां चन्द्र घंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। उस समय मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। साधक के समस्त पाप-बंधन छूट जाते हैं। प्रेत बाधा आदि समस्याओं से भी मां साधक क ी रक्षा क रती हैं।


पूजन विधि -

सबसे पहले मां चन्द्रघंटा क ी मूर्ति अथवा तस्वीर क ा लक ड़ी क ी चौक ी पर लाल वस्त्र बिछाक र श्री दुर्गा यन्त्र के साथ स्थापित क रें तथा हाथ में लाल पुष्प लेक र मां चन्द्र घंटा क ा ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

प्रिण्डजप्रवरारू ढा चण्डक ोपास्त्रकै र्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

ध्यान के बाद हाथ में लिए हुए पुष्प मां क ी तस्वीर पर अर्पण क रें तथा अपनी मनोक ामना क ी पूर्ति के लिए मां के 108 बार मंत्र जाप करें। मंत्र इस प्रक ार है - ॐ चं चन्द्रघण्टाय हुं ॥ ध्यान रहे, मंत्र जाप से पहिले मां क ा तथा दुर्गा यंत्र सहित अखण्ड ज्योति क ा पंचोपचार विधि से पूजन क रें। लाल पुष्प चढ़ायें तथा लाल नैवेद्य क ा भोग लगायें। मन्त्र पूर्ण होने पर मां क ी प्रार्थना क रें तथा भजन क ीर्तन के बाद आरती क रें।

भोग

भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होती चाहिये एवं पूजन के उपरान्त वह दूध किसी ब्राह्मण को दे देना उचित है। यह सम्पूर्ण दु:खों से मुक्त होने का एक परम साधन है।

नवरात्र का तीसरा दिन माँ चंद्रघण्टा का

सम्पूर्ण कष्ट निवारण, बाधा निवारण, बाधा विनाशक माँ चंद्रघण्टा की उपासना।


नवरात्र के तीसरे दिन भगवती मां दुर्गा की तीसरी शक्ति भगवती चन्द्र घंटा की उपासना की जाती है। मां का यह रू प पाप- ताप एवं समस्त विघ् बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और परम शांति दायक एवं कल्याणकारी है। मां के मस्तक में घंटे की भांति अर्घचन्द्र सुशोभित है। इसीलिए मां को चन्द्र घंटा कहते हैं। कंचन की तरह कांति वाली भगवती की दश विशाल भुजाएं है। दशों भुजाओं में खड्ग, वाण, तलवार, चक्र , गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र शोभायमान हैं। मां सिंह पर सवार होकर मानो युद्ध के लिए उद्यत दिखती हैं। मां की घंटे की तरह प्रचण्ड ध्वनि से असुर सदैव भयभीत रहते हैं। तीसरे दिन की पूजा अर्चना में मां चन्द्र घंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। उस समय मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। साधक के समस्त पाप-बंधन छूट जाते हैं। प्रेत बाधा आदि समस्याओं से भी मां साधक क ी रक्षा क रती हैं।


पूजन विधि -

सबसे पहले मां चन्द्रघंटा क ी मूर्ति अथवा तस्वीर क ा लक ड़ी क ी चौक ी पर लाल वस्त्र बिछाक र श्री दुर्गा यन्त्र के साथ स्थापित क रें तथा हाथ में लाल पुष्प लेक र मां चन्द्र घंटा क ा ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

प्रिण्डजप्रवरारू ढा चण्डक ोपास्त्रकै र्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

ध्यान के बाद हाथ में लिए हुए पुष्प मां क ी तस्वीर पर अर्पण क रें तथा अपनी मनोक ामना क ी पूर्ति के लिए मां के 108 बार मंत्र जाप करें। मंत्र इस प्रक ार है - ॐ चं चन्द्रघण्टाय हुं ॥ ध्यान रहे, मंत्र जाप से पहिले मां क ा तथा दुर्गा यंत्र सहित अखण्ड ज्योति क ा पंचोपचार विधि से पूजन क रें। लाल पुष्प चढ़ायें तथा लाल नैवेद्य क ा भोग लगायें। मन्त्र पूर्ण होने पर मां क ी प्रार्थना क रें तथा भजन क ीर्तन के बाद आरती क रें।

भोग

भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होती चाहिये एवं पूजन के उपरान्त वह दूध किसी ब्राह्मण को दे देना उचित है। यह सम्पूर्ण दु:खों से मुक्त होने का एक परम साधन है।

नवरात्र का चौथा दिन माँ कू ष्माण्डा का

आयु, यश, बल व ऐश्वर्य प्रदान करने वाली माँ कूष्माण्डा की उपासना।

नवरात्र के चौथे दिन आयु, यश, बल व ऐश्वर्य को प्रदान क रने वाली भगवती कू ष्माण्डा की उपासना-आराधना का विधान है। इस दिन साधकजन अपने मन को अनाहत चक्र में स्थित क रके मां कू ष्मांडा की कृपा प्राप्त क रते हैं। मां सृष्टि की आदि स्वरू पा तथा आदि शक्ति हैं। मां के इसी रू प ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण मां को कू ष्मांडा क हा गया है। मां का निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दशों दिशाएं प्रकाशित हैं। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब भगवती कू ष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इनकी आठ भुजाएं हैं। उनके सात भुजाओं में - कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प क लश चक्र एवं गदा शोभायमान हैं। आठवें हाथ में जप की माला है जो अष्ट सिद्धि एवं नौ निधियों को देने वाली है। मां भगवती सिंह पर सवार हैं और इनको कुम्हड़ों की बलि अत्यन्त प्रिय है। मां पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव से की गई साधना से तुरंत प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण क रती हैं तथा हर प्रकार से मंगल क रती हैं।

पूजन विधि

सर्वप्रथम मां कू ष्मांडा की मूर्ति अथवा तस्वीर को चौकी पर दुर्गा यंत्र के साथ स्थापित करें इस यंत्र के नीच चौकी पर पीला वस्त्र बिछायें। अपने मनोरथ के लिए मनोकामना गुटिका यंत्र के साथ रखें। दीप प्रज्वलित क रें तथा हाथ में पीलें पुष्प लेक र मां कूष्मांडा का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

सुरा सम्पूर्ण क लशं रू धिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर अर्पण करें तथा भगवती कूष्मांडा और यंत्र का पंचोपचार विधि से पूजन करें और पीले फल अथवा पीले मिष्ठान का भोग लगायें। इसके बाद मां का 108 बार मंत्र जाप क रें - ॐ क्रीं कू ष्मांडायै क्रीं ॐ । इसके बाद मां की प्रार्थना करें। कुम्हड़े की बलि भी दे सकते हैं तथा मां की आरती, कीर्तन आदि क रें।

भोग

इस दिन मालपूआ का नैवेद्य अर्पण किया जाय और फिर वह योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाय। इस अपूर्व दानमात्र से ही किसी प्रकार के विघ् सामने नहीं आ सकते।

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