Friday, 10 June 2011

शनिदेव का मानव जीवन पर प्रभाव


संपूर्ण विश्व ग्रहों द्वारा नियंत्रित हैं और शनिदेव मुख्य नियंत्रक हैं। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान न्यायाधीश भी कहा गया है। शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही अन्य ग्रह भी संबंधित व्यक्ति को शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। जड़-चेतन सभी पर ग्रहों का अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता ही रहता है। लेकिन मैं आपको शनिदेव के संबंध में कुछ विशिष्ट जानकारियां प्रस्तुत करने जा रहा हूं जिनके विषय में लोगों के अंदर उल्टी-सीधी धारणाएं घर किये बैठी हैं, उनका नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं।
शनिदेव के संबंध में कुछ बताने से पहले मैं ग्रहों की मूल अवधारणा और अन्य ग्रहों के संबंध में भी कुछ बता देना चाहता हूं ताकि आप लोगों को यह विषय समझने में आसानी हो। जिस प्रकार परब्रह्म परमात्मा के ही परम अंश ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूप में सृजन-पालन-संहार के दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं, ठीक उसी प्रकार जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करने के लिए स्वयं परमात्मा ने ही ग्रहों के रूप में अवतार धारण किया है। शाों में स्पष्ट घोषित किया गया है कि सभी नवग्रह भगवान विष्णु के विविध अवतारों के प्रतीक हैं। शाों में सूर्य को रामावतार, चन्द्रमा को कृष्णावतार, मंगल को नरसिंहावतार, बुध को बौद्धावतार, गुरु को वामनावतार, शुक्र को परशुरामावतार, शनिदेव को कूर्मावतार, राहु को वाराहावतार और केतु को मत्स्यावतार कहा गया हैं। यहां शनिदेव के संबंध में एक बात और भी स्पष्ट रूप से समझ लिये जाने की जरूरत है कि उनका प्रादुर्भाव मर्यादापुरुषोत्तम राम के अवतार सूर्य के पुत्र के रूप में हुआ जो खुद समुद्र-मंथन के समय सुमेरू पर्वत के आधार बने विष्णु के कूर्म (कच्छप) अवतार के प्रतीक हैं। ग्रहों के अतिरिक्त जितने भी देवलोकवासी हैं, सब ग्रहों के ही अंश हैं। इस बात से स्पष्ट है कि इन्द्रादि सारे देवताओं से भी ग्रह अधिक शक्तिशाली होते हैं। ग्रहों का अधिकार क्षेत्र देवताओं से बड़ा है। इसलिए शाों में स्पष्ट घोषित किया गया है कि - ग्रहाराज्यं प्रयच्छन्तिग्रहा: राज्यं हरन्ति च। ग्रहै: व्याप्तं सकल जगत।...... यानी ग्रह केवल राज्य दिलाने वाले या हरण करने वाले ही नहीं हैं, बल्कि यह संपूर्ण विश्व ही ग्रहों से व्याप्त हैं।
वर्तमान युग को शाों में ‘कलियुग’ नाम से संबोधित किया गया है। सामान्य जन इसे ‘कलयुग’ भी कहा करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप आज का मनुष्य जिस प्रकार कल-पुर्जों व मशीनों पर अवलंबित होता जा रहा है, उसे देखते हुए इसे कलयुग कहा जाना भी युक्तियुक्त कहा जा सकता है। नये-नये वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप मनुष्य की सुख-सुविधाएं भी नित्यप्रति बढ़ती जा रही हैं। धरती, समुद्र व वायुमंडल को कौन कहे, अंतरिक्ष में भी मनुष्य के कदम बड़ी तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं। ज्योतिषशा में अंतरिक्ष, सुनसान स्थानों, शमशानों, बीहड़ वन-प्रांतरों, दुर्गम-घाटियों, पर्वतों, गुफाओं, गह्नरों, खदानों व जन शून्य आकाश-पाताल के रहस्यपूर्ण-स्थलों को शनिदेव के अधिकार क्षेत्र में परिगणित किया गया है। अत: अंतरिक्ष व अन्यान्य शनिदेव के अधिकार क्षेत्र में आने वाले रहस्यपूर्ण विषयों व स्थानों में मनुष्य की अपूर्व प्रगति को देखते हुए यदि इसे शनिदेव का युग भी कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शनिदेव के अधिकार क्षेत्र में केवल रहस्यमय व गुह्य ज्ञान ही नहीं है बल्कि कर्म, सतत् चेष्टा, श्रम, सेवा-शुश्रुषा, लाचार, विकलांगों, रोगी व वृद्धों की सहायता आदि भी आते हैं।
कर्म के कारक शनिदेव प्रधान इस युग में ब्रह्माण्ड और परमाणु जगत के अनेकानेक रहस्यों पर से पर्दा उठता जा रहा है। ऐसे मौजूदा माहौल में यदि कोई अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों का मानव-जीवन पर पडऩे वाले प्रभावों की चर्चा करे तो निश्चित रूप से उसकी हंसी उड़ायी जाती है। किंतु अति आधुनिक अनुसंधानों से पता चला है कि इस ब्रह्माण्ड में स्थित सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्राणी व द्रव्य भी एक दूसरे से इस प्रकार गुथे हुए हैं कि उनमें हुए परिवर्तनों का प्रभाव निश्चित रूप से अखिल ब्रह्माण्ड पर पड़ता है। ये बड़ी सूक्ष्म बातें हैं जो सामान्य लोगों की मोटी बुद्धि में आसानी से हजम नहीं होती। किंतु किसी के मानने या न मानने से असलियत में कोई फर्र्क नहीं पड़ता। हमारे प्राचीन मनीषियों ने यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे की जो घोषणा की थी, उसकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है। सौर-जगत में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध आदि ग्रहों की विभिन्न गतिविधियों व क्रियाकलापों में जो नियम काम करते हैं, ठीक वही नियम मनुष्य ही नहीं संपूर्ण प्राणिमात्र के शरीर में स्थित सौर-जगत की इकाइयों का संचालन करते हैं। भौतिक विज्ञान पदार्थ की सूक्ष्म व प्राथमिक संरचना का आधार परमाणु को मानता है, जिसकी संरचना पर गौर करने से यही बात स्पष्ट होती है कि परमाणु की नाभि पर स्थित धनात्मक प्रोट्रान के चारों तरफ घूमने वाले ऋणात्मक इलेक्ट्रानों के परिपथ भी बहुत कुछ सौर-परिवार के सदस्य-ग्रहों के समान ही होते हैं और उन्हीं की तरह गतिशील रहते हैं।
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