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Wednesday, 15 June 2011
क्या चन्द्र ग्रहण की पूजा से बरसेगा धन ?
Tuesday, 14 June 2011
ग्रहण का राशियों पर प्रभाव
15 जून 21वीं सदी का अभूतपूर्व और अद्ïभुत चंद्र ग्रहण
श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज |
Sunday, 12 June 2011
मार्गी शनि होरा शास्त्र के अनुसार बारह राशियों पर क्या प्रभाव डालेगा-
शनि मार्गी
Saturday, 11 June 2011
18 साल के बाद 18 महीनें के लिए राहु का महा परिवर्तन योग
मैदिनी ज्योतिष ग्रह गणना अनुसार इस समय जिस तरह के ग्रह योगायोग है ये 30 जुलाई तक अनुकूलता का संकेत नहीं दे रहे हैं। इस समय जबरदस्त राजनीतिक उठा-पटक परिवर्तन की संभावना है। सत्ता और विपक्ष में टकराव बढ़ेगा। राजनीतिक नये समीकरण बनेंगे। संवेदनशील विषयों पर असंवेदनशील टिप्पणी एवं बयानबाजी से बखेड़ा खड़ा होगा। प्राकृतिक प्रकोप की घटनाएं बढ़ेगी। हवा, आंधी-तूफान, अग्नि के साथ-साथ पानी से भी नुकसान की संभावना नजर आ रही है। सडक़, रेल और हवाई की दुर्घटना पुन: नजर आ रही है। भूकंप, भूसंख्लन, बाढ़ जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी होगी। पूरा विश्व आतंकवाद से जूंझता हुआ नजर आएगा। बृहस्पति और राहु का षडाष्टïक योग धर्म को लेकर उठा-पटक का संकेत भी दे रहा है। धर्म पर किये गये अर्नगल बयानबाजी से सांप्रदायिक सौह्रïार्द की भी कमी नजर आ रही है। मैदिनी ज्योतिष मुख्य रूप से यह संकेत दे रही है संपूर्ण पक्ष और विपक्ष के राजनेताओं को एवं प्रमुख व्यक्तियों को वाणी में संयम और शालीनता का परिचय देना राष्टï्र के हित में देना अति आवश्यक होगा।
होरा शास्त्र के अनुसार द्वादश राशियों पर राहु के राशि परिवर्तन का प्रभाव
राहु अकस्मात और अचानक फल प्रदान करता है। और यह बारह की बारह राशियों को कुछ लेगा और देगा भी अवश्य।
मेष राशि मीन राशि वालों के लिए राहु नौवें भाव में गोचर कर रहा है। मीन राशि वालों के लिए यह राशि परिवर्तन लाभदायक रहेगा। किये गए प्रयासों में आशातीत लाभ की प्राप्ति होगी। पुराने मित्रों से मिलन होगा और उनके सहयोग से लाभ प्राप्त होगा। मेष राशि श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज | |
Friday, 10 June 2011
शनिदेव को परमप्रभु का आदेश
शनिदेव को परमप्रभु का आदेश है कि प्राणिमात्र को उनके कर्मों के फल का यथावत भुगतान कराओ और शनिदेव प्रभु के आदेश का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं। आशा है, उक्त बातों को पढक़र आपकी सारी शंकाओं का निवारण हो गया होगा जिन्हें आपने किसी की कही-सुनी बातों के आधार पर अपने मन में पहले से पाल रखी होगी।
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भारतीय ज्योतिष के अनुसार शनिदेव
शनिदेव कर्म के कारक होने की वजह से मनुष्य को क्रियमाण कर्मों का अवलंबन ले अपने पूर्वकृत कर्मों के फल भोग को भी कुछ हद तक अपने अनुरूप बनाने में सक्षम हो सकता है। ज्योतिषीय विश्लेषण के आधार पर बताये गये उपायों का अवलंबन ले प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का पुरुषार्थ कर सकता है। इस प्रकार ज्योतिष मनुष्य को भविष्य की जानकारी देकर उसे अपने कत्र्तव्यों द्वारा प्रतिकूल स्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन देता है। यह प्रेरणा मनुष्य के अंदर पुरुषार्थ करने की पर्याप्त चेतना भी जाग्रत करती है।
यह पूरा विश्व जिस सर्वोच्च सत्ता के संकल्प मात्र से अस्तित्व में आया है। उसी की इच्छानुसार नव ग्रहों के ऊपर इस विश्व के समस्त जड़-चेतन को नियंत्रित व अनुशासित करते रहने का गुरुतर भार भी सुपुर्द किया गया है। मानव समेत समस्त प्राणियों को मिलने वाले सुख-दुख ग्रहों के द्वारा ही प्रदान किये जाते हैं। यह बात अलग है कि किसी भी प्राणी को मिलने वाले सुख-दुखों के मूल में उस प्राणी के किये गये निजी कर्म ही होते हैं। किंतु कर्म का कारक होने की वजह से शनिदेव की क्रियमाण कर्मों के संपादन में एक अहम भूमिका है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। मनुष्य के द्वारा किये गये कर्मों के विपुल भंडार में से किसी कर्म का फल कब और किस प्रकार भोगना है, इसका निर्धारण तो नव ग्रहों द्वारा ही हुआ करता है जिसमें शनिदेव की भूमिका अति विशिष्ट होती है।
क्योंकि प्राणियों के शुभाशुभ कर्मों का फल प्रदान करने में शनिदेव एक सर्वोच्च दण्डाधिकारी न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हैं। अशुभ कर्मों के लिए नियत दण्ड प्रदान करते समय शनिदेव न तो कभी देर करते है और न पक्षपात। दण्ड देते वक्त दया तो उनको छू नहीं पाती, यही वजह है कि शनिदेव नाम से ही लोगों के हृदय में भय समा जाता है। संभवत: शनिदेव को क्रूर, कुटिल व पाप ग्रह भी इसीलिए कहा गया है। किंतु इसका मूल आशय यह नहीं कि शनिदेव के अंदर कृपालुता व दयालुता की कमी है।
पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार संचित पुण्य और पापों का फल वर्तमान जीवन में ग्रहों के अनुसार ही प्रकट होते हैं। इसलिए महादशा, अंतर्दशा आदि का ज्ञान भी आवश्यक है। इसलिए उसके परिणाम की जानकारी हो जाने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति और अनिष्ट फलों से बचाव के लिए उचित उपाय किया जा सकता है। यह याद रखने की बात है कि ग्रह संबंधी जो आयु है, वही उसकी दशा है। सभी ग्रह अपनी दशा में अपने गुण के अनुरूप जातक के पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों के अनुसार उसे शुभाशुभ परिणाम प्रदान करते हैं।
हमारे प्राचीन मनीषियों ने शनिदेव के अनुकूल व प्रतिकूल प्रभावों का बड़ी सूक्ष्मता से निरीक्षण कर उसकी विस्तृत विवेचना की है। शनिदेव एक ऐसे ग्रह हैं जिनका जातकों पर परस्पर विरोधी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अगर जातक के शुभ कर्मों की वजह से शनिदेव अनुकूल होते हैं तो उसको धन-वैभव से परिपूर्ण कर देते हैं, अन्यथा उसके निजकृत अशुभ कर्मों की वजह से प्रतिकूलत फल भी देते हैं।
शनिदेव की अनुकूल दशा में मनुष्य को स्मरण-शक्ति, धन-वैभव व ऐश्वर्यादि की प्राप्ति होती है। उन्हें गड़े खजाने भी मिल जाते हैं और कारोबार में संतोषजनक लाभ भी उपलब्ध होता है। शनिदेव की अनुकूलता लोगों को जनप्रतिनिधि या शहर, कस्बों व गांवों के प्रधान भी बना देती है। उन्हें कृषि कार्य से विशेष धनार्जन होता है। ऐसे लोगों को आदर, यश, पद आदि सब पर्याप्त रूप से उपलब्ध होते हैं।
जब शनिदेव जातक के निजकृत अशुभ कर्मों की वजह से प्रतिकूल होते हैं तो जातक को जिस प्रकार सुनार सोने को आग में तपाकर गहनों में परिवर्तित कर देता है ठीक उसी प्रकार निजकृत कर्मों को भुगतवाकर एक सदाचारी मानव भी बनाता है और उसके लिए उसे बहुत से कष्टïों का सामना भी करना पड़ता है। शनिदेव पक्षपात नहीं करते हैं। वे तो मात्र जातक को कुंदन बनाने का प्रयास करते हैं। वे कतई नहीं चाहते हैं कि जातक के भीतर में कोई दाग बचा रह जाये।
याद रखें, शनिदेव के कोप का भाजन वही लोग होते हैं जो गलत काम करते हैं। अच्छे कर्म करने वालों पर शनिदेव अति प्रसन्न व उनके अनुकूल हो जाते हैं और उनकी कृपा से लोगों की उन्नति होती है। शनिदेव उनको महत्वपूर्ण पदों के स्वामी अर्थात् मंत्री, प्रधानमंत्री तक बना देते हैं। लेकिन जब शनिदेव अप्रसन्न हो जाते हैं तो उन्हीं राजनेताओं को वह काल-कोठरी में बंद करा देते हैं और उन्हें तरह-तरह की यातनाएं भी झेलनी पड़ जाती हैं।
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भारतीय ज्योतिष के अनुसार शनिदेव
शनिदेव कर्म के कारक होने की वजह से मनुष्य को क्रियमाण कर्मों का अवलंबन ले अपने पूर्वकृत कर्मों के फल भोग को भी कुछ हद तक अपने अनुरूप बनाने में सक्षम हो सकता है। ज्योतिषीय विश्लेषण के आधार पर बताये गये उपायों का अवलंबन ले प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का पुरुषार्थ कर सकता है। इस प्रकार ज्योतिष मनुष्य को भविष्य की जानकारी देकर उसे अपने कत्र्तव्यों द्वारा प्रतिकूल स्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन देता है। यह प्रेरणा मनुष्य के अंदर पुरुषार्थ करने की पर्याप्त चेतना भी जाग्रत करती है।
यह पूरा विश्व जिस सर्वोच्च सत्ता के संकल्प मात्र से अस्तित्व में आया है। उसी की इच्छानुसार नव ग्रहों के ऊपर इस विश्व के समस्त जड़-चेतन को नियंत्रित व अनुशासित करते रहने का गुरुतर भार भी सुपुर्द किया गया है। मानव समेत समस्त प्राणियों को मिलने वाले सुख-दुख ग्रहों के द्वारा ही प्रदान किये जाते हैं। यह बात अलग है कि किसी भी प्राणी को मिलने वाले सुख-दुखों के मूल में उस प्राणी के किये गये निजी कर्म ही होते हैं। किंतु कर्म का कारक होने की वजह से शनिदेव की क्रियमाण कर्मों के संपादन में एक अहम भूमिका है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। मनुष्य के द्वारा किये गये कर्मों के विपुल भंडार में से किसी कर्म का फल कब और किस प्रकार भोगना है, इसका निर्धारण तो नव ग्रहों द्वारा ही हुआ करता है जिसमें शनिदेव की भूमिका अति विशिष्ट होती है।
क्योंकि प्राणियों के शुभाशुभ कर्मों का फल प्रदान करने में शनिदेव एक सर्वोच्च दण्डाधिकारी न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हैं। अशुभ कर्मों के लिए नियत दण्ड प्रदान करते समय शनिदेव न तो कभी देर करते है और न पक्षपात। दण्ड देते वक्त दया तो उनको छू नहीं पाती, यही वजह है कि शनिदेव नाम से ही लोगों के हृदय में भय समा जाता है। संभवत: शनिदेव को क्रूर, कुटिल व पाप ग्रह भी इसीलिए कहा गया है। किंतु इसका मूल आशय यह नहीं कि शनिदेव के अंदर कृपालुता व दयालुता की कमी है।
पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार संचित पुण्य और पापों का फल वर्तमान जीवन में ग्रहों के अनुसार ही प्रकट होते हैं। इसलिए महादशा, अंतर्दशा आदि का ज्ञान भी आवश्यक है। इसलिए उसके परिणाम की जानकारी हो जाने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति और अनिष्ट फलों से बचाव के लिए उचित उपाय किया जा सकता है। यह याद रखने की बात है कि ग्रह संबंधी जो आयु है, वही उसकी दशा है। सभी ग्रह अपनी दशा में अपने गुण के अनुरूप जातक के पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों के अनुसार उसे शुभाशुभ परिणाम प्रदान करते हैं।
हमारे प्राचीन मनीषियों ने शनिदेव के अनुकूल व प्रतिकूल प्रभावों का बड़ी सूक्ष्मता से निरीक्षण कर उसकी विस्तृत विवेचना की है। शनिदेव एक ऐसे ग्रह हैं जिनका जातकों पर परस्पर विरोधी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अगर जातक के शुभ कर्मों की वजह से शनिदेव अनुकूल होते हैं तो उसको धन-वैभव से परिपूर्ण कर देते हैं, अन्यथा उसके निजकृत अशुभ कर्मों की वजह से प्रतिकूलत फल भी देते हैं।
शनिदेव की अनुकूल दशा में मनुष्य को स्मरण-शक्ति, धन-वैभव व ऐश्वर्यादि की प्राप्ति होती है। उन्हें गड़े खजाने भी मिल जाते हैं और कारोबार में संतोषजनक लाभ भी उपलब्ध होता है। शनिदेव की अनुकूलता लोगों को जनप्रतिनिधि या शहर, कस्बों व गांवों के प्रधान भी बना देती है। उन्हें कृषि कार्य से विशेष धनार्जन होता है। ऐसे लोगों को आदर, यश, पद आदि सब पर्याप्त रूप से उपलब्ध होते हैं।
जब शनिदेव जातक के निजकृत अशुभ कर्मों की वजह से प्रतिकूल होते हैं तो जातक को जिस प्रकार सुनार सोने को आग में तपाकर गहनों में परिवर्तित कर देता है ठीक उसी प्रकार निजकृत कर्मों को भुगतवाकर एक सदाचारी मानव भी बनाता है और उसके लिए उसे बहुत से कष्टïों का सामना भी करना पड़ता है। शनिदेव पक्षपात नहीं करते हैं। वे तो मात्र जातक को कुंदन बनाने का प्रयास करते हैं। वे कतई नहीं चाहते हैं कि जातक के भीतर में कोई दाग बचा रह जाये।
याद रखें, शनिदेव के कोप का भाजन वही लोग होते हैं जो गलत काम करते हैं। अच्छे कर्म करने वालों पर शनिदेव अति प्रसन्न व उनके अनुकूल हो जाते हैं और उनकी कृपा से लोगों की उन्नति होती है। शनिदेव उनको महत्वपूर्ण पदों के स्वामी अर्थात् मंत्री, प्रधानमंत्री तक बना देते हैं। लेकिन जब शनिदेव अप्रसन्न हो जाते हैं तो उन्हीं राजनेताओं को वह काल-कोठरी में बंद करा देते हैं और उन्हें तरह-तरह की यातनाएं भी झेलनी पड़ जाती हैं।
शनिदेव का मानव जीवन पर प्रभाव
शनिदेव के संबंध में कुछ बताने से पहले मैं ग्रहों की मूल अवधारणा और अन्य ग्रहों के संबंध में भी कुछ बता देना चाहता हूं ताकि आप लोगों को यह विषय समझने में आसानी हो। जिस प्रकार परब्रह्म परमात्मा के ही परम अंश ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूप में सृजन-पालन-संहार के दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं, ठीक उसी प्रकार जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करने के लिए स्वयं परमात्मा ने ही ग्रहों के रूप में अवतार धारण किया है। शाों में स्पष्ट घोषित किया गया है कि सभी नवग्रह भगवान विष्णु के विविध अवतारों के प्रतीक हैं। शाों में सूर्य को रामावतार, चन्द्रमा को कृष्णावतार, मंगल को नरसिंहावतार, बुध को बौद्धावतार, गुरु को वामनावतार, शुक्र को परशुरामावतार, शनिदेव को कूर्मावतार, राहु को वाराहावतार और केतु को मत्स्यावतार कहा गया हैं। यहां शनिदेव के संबंध में एक बात और भी स्पष्ट रूप से समझ लिये जाने की जरूरत है कि उनका प्रादुर्भाव मर्यादापुरुषोत्तम राम के अवतार सूर्य के पुत्र के रूप में हुआ जो खुद समुद्र-मंथन के समय सुमेरू पर्वत के आधार बने विष्णु के कूर्म (कच्छप) अवतार के प्रतीक हैं। ग्रहों के अतिरिक्त जितने भी देवलोकवासी हैं, सब ग्रहों के ही अंश हैं। इस बात से स्पष्ट है कि इन्द्रादि सारे देवताओं से भी ग्रह अधिक शक्तिशाली होते हैं। ग्रहों का अधिकार क्षेत्र देवताओं से बड़ा है। इसलिए शाों में स्पष्ट घोषित किया गया है कि - ग्रहाराज्यं प्रयच्छन्तिग्रहा: राज्यं हरन्ति च। ग्रहै: व्याप्तं सकल जगत।...... यानी ग्रह केवल राज्य दिलाने वाले या हरण करने वाले ही नहीं हैं, बल्कि यह संपूर्ण विश्व ही ग्रहों से व्याप्त हैं।
वर्तमान युग को शाों में ‘कलियुग’ नाम से संबोधित किया गया है। सामान्य जन इसे ‘कलयुग’ भी कहा करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप आज का मनुष्य जिस प्रकार कल-पुर्जों व मशीनों पर अवलंबित होता जा रहा है, उसे देखते हुए इसे कलयुग कहा जाना भी युक्तियुक्त कहा जा सकता है। नये-नये वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप मनुष्य की सुख-सुविधाएं भी नित्यप्रति बढ़ती जा रही हैं। धरती, समुद्र व वायुमंडल को कौन कहे, अंतरिक्ष में भी मनुष्य के कदम बड़ी तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं। ज्योतिषशा में अंतरिक्ष, सुनसान स्थानों, शमशानों, बीहड़ वन-प्रांतरों, दुर्गम-घाटियों, पर्वतों, गुफाओं, गह्नरों, खदानों व जन शून्य आकाश-पाताल के रहस्यपूर्ण-स्थलों को शनिदेव के अधिकार क्षेत्र में परिगणित किया गया है। अत: अंतरिक्ष व अन्यान्य शनिदेव के अधिकार क्षेत्र में आने वाले रहस्यपूर्ण विषयों व स्थानों में मनुष्य की अपूर्व प्रगति को देखते हुए यदि इसे शनिदेव का युग भी कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शनिदेव के अधिकार क्षेत्र में केवल रहस्यमय व गुह्य ज्ञान ही नहीं है बल्कि कर्म, सतत् चेष्टा, श्रम, सेवा-शुश्रुषा, लाचार, विकलांगों, रोगी व वृद्धों की सहायता आदि भी आते हैं।
कर्म के कारक शनिदेव प्रधान इस युग में ब्रह्माण्ड और परमाणु जगत के अनेकानेक रहस्यों पर से पर्दा उठता जा रहा है। ऐसे मौजूदा माहौल में यदि कोई अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों का मानव-जीवन पर पडऩे वाले प्रभावों की चर्चा करे तो निश्चित रूप से उसकी हंसी उड़ायी जाती है। किंतु अति आधुनिक अनुसंधानों से पता चला है कि इस ब्रह्माण्ड में स्थित सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्राणी व द्रव्य भी एक दूसरे से इस प्रकार गुथे हुए हैं कि उनमें हुए परिवर्तनों का प्रभाव निश्चित रूप से अखिल ब्रह्माण्ड पर पड़ता है। ये बड़ी सूक्ष्म बातें हैं जो सामान्य लोगों की मोटी बुद्धि में आसानी से हजम नहीं होती। किंतु किसी के मानने या न मानने से असलियत में कोई फर्र्क नहीं पड़ता। हमारे प्राचीन मनीषियों ने यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे की जो घोषणा की थी, उसकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है। सौर-जगत में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध आदि ग्रहों की विभिन्न गतिविधियों व क्रियाकलापों में जो नियम काम करते हैं, ठीक वही नियम मनुष्य ही नहीं संपूर्ण प्राणिमात्र के शरीर में स्थित सौर-जगत की इकाइयों का संचालन करते हैं। भौतिक विज्ञान पदार्थ की सूक्ष्म व प्राथमिक संरचना का आधार परमाणु को मानता है, जिसकी संरचना पर गौर करने से यही बात स्पष्ट होती है कि परमाणु की नाभि पर स्थित धनात्मक प्रोट्रान के चारों तरफ घूमने वाले ऋणात्मक इलेक्ट्रानों के परिपथ भी बहुत कुछ सौर-परिवार के सदस्य-ग्रहों के समान ही होते हैं और उन्हीं की तरह गतिशील रहते हैं।
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4 मई 2019 शनि अमावस्या महोत्सव आओ चले श्री शनिधाम, असोला, फह्तेपुर बैरी, छत्तरपुर, नई दिल्ली 110074 https://www.facebook.com/ShreeShani...
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आपका नाम इन चू , चे , चो , ला , ली , लू , ले , लो , अ अक्षरों से शुरू हो रहें है तो आपको 2023 शुरू होने से पहले यह पूरी विडियो देखनी चाहिए ...