Wednesday, 31 March 2010

“AMAZING IS A GRACE OF GURU WHICH GIVES SPIRITUAL REVELATION AND ENLIGHTENS OUR SOUL.”

A Graceful eye of Guru fills the heart of disciple with that brilliant radiance which brings the mystery of this universe in his grip. It’s well versed:

Guru prem ka ank pdaye diya,Aab padne mien kuch nahi baki.

Bavan chirag jalaye diya,Pat kholi mahal mai ley jhanki

Char ved to pasaye takhat lage,Sucham ved upar aasan ja ki

Kahe kabir ik nor seti,Sarfraj hua banda khaki.

It says,

When devotee fully engrosses himself in service of guru’s lotus feet under his protection, then his heart and soul get absorbed!

When his heart immerses in the education and initiations taught by Guru Dev, then it reveals the clear vision about the secret of four Hindu Vedas!

The entity of devotee dissolves with the supreme element of this universe!

This is a reason why all saint, sages and scriptures sing Guru Mahima i.e. The glory of Guru and illustrate the importance of service and discourses of Guru.

Inference from Book: ‘Lali Mere Lal Ki Jit Dekhoo Tit Lal’

GURU DARBAR

Hkwyks dks jkg fn[kk ns] jkg ij pyuk fl[kk ns ] eqf’dy esa jgs lnk lkFk ] fQj Hkh u le>s xq# vuqdaik] rks Hkwy gS gekjh A

Shows the path to the lost one’s, teaches to follow the path, helps to access through difficulties still we don’t learn about GRACE OF GURU then we are at fault !

u HkVduk tkuus esa xq# ds fujkys ksyh tc cjlk;s A

Don’t try to learn means and ways of Guru when, how and why? You just learn to open your alms bags, when Guru showers bountiful of grace!

dc vk tk;s ] dgka vk tk;s] dSls vk tk;s] fdldks gS irk \

tks igpku tk;s ekuks rj tk;s A

When does appear, where does appear, how does appear? No one is aware of! Those who identify understand the presence of supreme divine.

We are the part of universal supreme ‘THE DIVINE LIGHT’ which is dispersed in each entity of universe.

ü To learn and know more about read book written by Guruji :

[kqyk vkea=.k ] An awakening Call to Eternal Bliss

GURU DARBAR

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We are the part of universal supreme ‘THE DIVINE LIGHT’ which is dispersed in each entity of universe.

ü To learn and know more about read book written by Guruji :

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कालसर्प

मूलत: राहु-केतु दोनों ही आधयात्मिक ग्रह हैं। अत: इन ग्रहों के विशेष अधययन की नितांत आवश्यकता है। वास्तव में राहु-केतु ग्रहों का हमारे कार्मिक फल से बहुत गहरा संबंधा है। ये ग्रह जीवन के सूक्ष्म विन्दुओं के ज्यादा निकट हैं। इनका सीधाा संबंधा हमारी चेतना से है। (ये दोनों ग्रह अपना प्रभाव देने में अचूक हैं।

राहु-केतु ग्रहों को छाया ग्रह कहा जाता है, क्योंकि आकाश में ये दोनों ग्रह विन्दुओं के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। जहां सूर्य और चन्द्र पथ एक-दूसरे से मिलते हैं। उस विन्दु विशेष को राहु-केतु छयाग्रह कहा गया है।

मुख्यत: इन छाया ग्रहों से जातक के आंतरिक स्वभाव का पता चलता है। जिसके अनुसार जातक अपने जीवन को गतिमान कर सकता है। इन ग्रहों की स्पष्ट व्याख्या से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे अपनी सुरक्षा कर सकता है। किन्तु इन छाया ग्रहों के बारे में एक बात सत्य है कि इन ग्रहों द्वारा जीवन में जो भी अनिष्टकारी घटनायें होती है। वे जातक को आधयात्मिक की ओर अग्रसर करती है। कालसर्प योग के प्रमुख भेद

कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्तुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है -

1. अनन्त कालसर्प योग

जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। राहु जब लग्न में हो तो जातक धनवान होता है, बलवान होता है साथ-साथ बहुत ही दृढ़ निष्चयी और साहसी होगा। हां इतना जरुर मैंने देखा है कि उसकी पत्नी का स्वास्थ्य हमेषा प्रतिकूल रहता है। परन्तु वे अपने पुरुषार्थ से अच्छी सफलता पाते हैं।

उपाय:

सूर्योदय के बाद तांबे के पात्र में गेहूं, गुड़, भर कर बहते जल में प्रवाह करें। संतान कष्ट हो तो काला और सफेद कम्बल गरीब को दान करें।
प्रतिदिन एक माला '्र नम: शिवाय' मंत्रा का जाप करें। कुल जाप संख्या 21 हजार पूरी होने पर शिव का रुद्राभिषेक करें।
कालसर्पदोष निवारक यंत्रा घर में स्थापित करके उसका नियमित पूजन करें।
नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रख बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें।
प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्रा का पाठ करें।
राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्रा का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्रा का दान करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शनिवार का व्रत रखते हुए हर शनिवार को शनि व राहु की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल में अपना मुंह देखकर उसे शनि मंदिर में समर्पित करें।
2 कुलिक कालसर्प योग

राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। इस भाव में राहु हमेषा जातक को दोहरे स्वभाव का बनाता है। अत्याधिक आत्मविष्वास के कारण अनेकों प्रकार की परेषानियों का सामना इन्हें करना पड़ता है। प्रियजनों का विरह झेलना पड़ता है। कई बार इस जातक को पाइल्स की षिकायत भी देखी गई है। कारण की केतु अष्टम स्थान में है। परन्तु एक बात मैंने देखी है कि केतु यहां पर मेष, वृष, मिथुन, कन्या और वृष्चिक राषि में हो तो जातक के पास धन की कमी नहीं होती। ऐसे व्यक्तियें को विरासत में बहुत धरोहर मिलती है।

उपाय:

चांदी की ठोस गोली सफेद धागे में हमेषा गले में धारण करें। केसर का तिलक लगाना भी आपके लिए शुभ होगा।
सरस्वती जी की एक वर्ष तक विधिवत उपासना करें।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
3. वासुकी कालसर्प योग

राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है।यदि तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु तो जातक के पास धन-दौलत और वैभव की कोइ कमी नहीं रहती। स्त्री सुख अनुकूल रहता है साथ ही मित्र भी हमेषा सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। परंतु अपने से छोटे भाइयों से इनका हमेषा विरोध रहता है। परन्तु पिता से अच्छी निभती है और पिता का आज्ञाकारी पुत्र भी होता है। तृतीय भाव में राहु हो तो ऐसे वयक्ति धर्म के माध्यम से धन अर्जित करते हैं और बहुत ही प्रसिध्द होते हैं। विदेश यात्रा करते हैं, व देश विदेश में यश प्राप्त करते हैं जैसे मुरारी बापू।

उपाय:

चवल, दाल और चना बहते पानी में प्रवाह में करें। साथ ही मकान के मुख्य द्वार पर अंदर-बाहर तांबे का स्वस्तिक या गणेष जी मूर्ति टांग दें।
नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रा में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
महामृत्युंजय मंत्रा का 51 हजार जप राहु, केतु की दशा अंतर्दशा में करें या करवायें।
किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्रा को अभिमंत्रिात कर धारण करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रा धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्रा का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला '्र नम: शिवाय' मंत्रा का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रा व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।
4. शंखपाल कालसर्प योग

राहु चौथे स्थान में और केतु दशम स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है। यदि राहु यहां उच्च का हो षुभ राषि वाला हो तो सभी सुखों से परिपूर्ण होता है। और जातक की कुंडली में षुक्र अनुकूल हो तो विवाह के बाद कारोबार और धन में वृध्दि होती है। साथ ही यदि चंद्रमा लग्न में हो तो आर्थिक तंगी कभी नहीं रहती। इस जातक को 48 वर्ष की आयु में बृहस्पति का उत्तम फल प्राप्त होता है। परन्तु फिर भी सफलता के लिए इन्हें विघ्नों का सामना करना पड़ता है। लेकिन केतु दषम भाव में मेष, वृष, कन्या और वृष्चिक राषि में है तो और भी उत्तम फल प्राप्त होता है एवं शत्रु चाह कर भी हानि नहीं पहुंचा सकता। चतुर्थ में राहु व दशम में केतु हो तो ऐसे व्यक्ति राजनिति में उतार चढ़ाव रहते हुए राजनिति में अच्छी सफलता पाते हैं। जैसे मुलायम सिंह जी, चौधरी चरण सिंह। ऐसे व्यक्तियों को दूसरे साथीयों से न चाहते हुए भी सहयोग प्राप्त होता है

उपाय:

गेहूं को पीले कपड़े में बांध कर जरुरतमंद व्यक्ति को दान दें। 400 ग्राम धनियां बहते पानी में प्रवाह करें।
अनुकूलन के उपाय -
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
नीला रुमाल, नीला घड़ी का पट्टा, नीला पैन, लोहे की अंगूठी धारण करें।
शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
हरिजन को मसूर की दाल तथा द्रव्य शुभ मुहूर्त में तीन बार दान करें।
18 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। लसनी, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, धूम्रवस्त्रा, धाूम्रपुष्प, नारियल, कंबल, बकरा, शस्त्रा आदि एक बार दान करें।
5. पद्म कालसर्प योग

राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। पंचम भाव में राहु व ग्यारहवें भाव में केतु अध्यात्म की ओर प्रेरित करता है। उत्तम परिवार वाला, आर्थिक स्थिति मजबूत साथ ही उत्तम गुणा एवं भोग से युक्त होता है। केतु ग्यारहवें घर में सम्पूर्ण सिध्दि व सफलता प्राप्त कराता है परन्तु इस योग में संतान पक्ष थोड़ा कमजोर रहता है। साथ ही जातक अपने भाइयों के प्रति थोड़ा कलहकारी होता है। 21 या 42 वर्ष की अवस्था में पिता को थोड़े कष्ट की सम्भावना रहती है। यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्रकी सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं। पंचम में राहु व एकादश में केतु हो तो ऐसे व्यक्ति सफल राजनितिक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को उतार चढ़ाव आते हैं परन्तु सफलता व यश अच्छा प्राप्त होता है। अधिकतर बड़े राजनितिज्ञों में यह कालसर्प योग पाया जाता है। जैसे नारायण दत्त तिवारी, राम विलास पासवान, शीला दिक्षित, शंकर राव चौहान आदि के जिवन से आप सब परिचित हैं। क्योंकि यह भाव पूर्व जन्मों से सम्बंधित होते हैं। पंचम और एकादश यह दोनो भाव ऐसे हैं राहु केतु कहीं भी बैठें हमेशा अच्छी ही सफलता मिलती है। ऐसे व्यक्तियों को उदर (पेट) के माध्यम से शरिरिक कष्ट आता है।

उपाय:

रात को सोते समय सिरहाने पांच मुलियां रखें और सवेरे मंदिर में रख आएं। संतान सुख के लिए दहलीज के नीचे चांदी की पत्तर रखें।
किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्रा को पूजित कर धारण करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और भोजनालय में बैठकर भोजन करें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
शयन कक्ष में लाल रंग के पर्दे, चादर तथा तकियों का उपयोग करें।
6. महापद्म कालसर्प योग

राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में राहु को छटे स्थान में बहुत ही प्रषस्त अनुभव किया गया है। सम्पत्ति, वाहन, दीर्घायु, सर्वत्र विजय, साहसी, बहादुर और उच्च प्रवाह का होता है। लोगों को बहुत सहयोग करता है। यहां तक की फांसी के फंदे से बचा कर लाने की क्षमता होती है। परंतु स्वयं कभी निरोग नहीं रहता। अनेको प्रकार की बिमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि जातक को सट्टे या जुए की आदत लग जाए तो बर्बाद हो जाता है। आंखों की बिमारी से दूर रहना चाहिए। राहु छठे में और केतु द्वादश में हो तो ऐसे व्यक्ति धर्म से जुड़े होते हैं सभी प्रकार की प्रतिस्पर्धा में अच्छी सफलता पाते हैं तथा दान पुण्य और दूसरों की मदद में अपना सब कुछ लुटाने को ततपर रहते हैं। जैसे पं जवाहर लाल नेहरु।

उपाय:

गणेष जी की उपासना सर्वमंगलकारी सिध्द होगी।
श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्रा धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्रा की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें एवं तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राध्द भी एक बार अवश्य करें।
मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।

7. तक्षक कालसर्प योग

केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक बहुत ही उंच्चे सरकारी पदों पर काम करता है। सुखी, परिश्रमी और धनी होता है। वह अपने पिता से बहुत ही प्यार करता है और साथ ही बहुत सहयोग करता है। लक्ष्मी की कोई कमी नहीं होती है लेकिन जातक स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला होता है। यदि अपनी संगत अच्छे लोगों के साथ रखे तो अच्छा रहेगा। गलत संगत की वजह से परेषानी भी आ सकती है यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना शुरु कर दें साथ ही अपने मान-सम्मान के fy, दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।

उपाय:

11 नारियल बहते पानी में प्रवाह करें।
कालसर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को ख्लिाएं।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्रा और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।
8. कर्कोटक कालसर्प योग

केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक उदार मन, समाज सेवी और धनवान होता है। परंतु वाणी पर संयम कभी नहीं रहता। साथ ही परिवार वालों से कम ही पटती है। साथ ही अपने कार्यों को बदलते रहता है। षिक्षा में समस्या आती है। साथ ही जातक हमेषा निंदा का पात्र होता है।

उपाय:

चांदी का चकोर टुकरा हमेषा अपनी जेब में रखें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्ताू उनके बिलों पर डालें।
अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
9. शंखचूड़ कालसर्प योग

केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है। योग में जातक दिर्घायु, साहसी, यषस्वी और धन-धान्य से परिपूर्ण होता। दाम्पत्य सुख बहुत ही अनुकूल रहता है। सर्वत्र विजय और सम्मान पाता है। परन्तु इस जातक का चित हमेषा अस्थिर रहता है।

उपाय:

राहु और केतु के बीज मंत्रों का जाप करें।
अनुकूलन के उपाय -
इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधिात जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 18 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्रा धारण करके राहु बीज मंत्रा की तीन या 18 माला जाप करें। जाप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।

10. घातक कालसर्प योग

केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में जातक परिश्रमी, धन संचयी व सुखी होता है। राजयोग का सुख भोगता है। दषम राहु राजनिती में अवष्य सफलता दिलाता है। मनोवांछित सफलताएं मिलती है। यदि शनि अनुकूल बैठा हो तो। परन्तु जातक हमेषा अपनी जन्म भूमि से दूर रहता है। माता का स्वास्थ्य प्रतिकूल रहता है। सब कुछ होने के बाद भी जातक के पास अपना सुख नहीं होता है।

उपाय:

हर मंगलवार का व्रत करें और 108 हनुमान चालीसा का पाठ करें।
त्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
शनिवार का व्रत रखें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला वस्त्रा, काला फूल, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल व हथियार आदि का समय-समय पर दान करते रहें।
नागपंचमी के दिन व्रत रखें और चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर दें।
शनिवार का व्रत करें और नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें। मंगलवार के दिन बंदरों को केला खिलाएं और बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें।
11. विषधर कालसर्प योग

केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में जातक 24 वर्ष की अवस्था के बाद सफलता प्राप्त करता है। आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। ग्यारहवें भाव में राहु हमेषा अनुकूल फल प्रदान करता है। उचित व अनुचित दोनों तरीकों से धन की प्राप्ति होती है। दाम्पत्य सुख बहुत ही अनुकूल रहता है। संतान सुख की कोई कमी नहीं रहती। परंतु प्रथम संतान को अवष्य कष्ट मिलता है।

उपाय:

घी का दीपक जला कर दुर्गा कवच और सिद्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
नागपंचमी को चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।
सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - '्र हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा केवल सोलह सोमवार तक करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
12. शेषनाग कालसर्प योग



केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक हमेषा अपनी मेहनत और सूझ-बुझ से सफलता हासिल करता है। परंतु बहुत जरुरी है अपने आचरण को संयमित रखना। संतान पक्ष प्रबल होता है। दीर्घायु होता है। परन्तु ननिहाल पक्ष से हमेषा खटपट लगी रहती है।

उपाय:

काले और सफेद तील बहते जल में प्रवाह करें। किसी भी मंदिर में केले का दान करें।
किसी शुभ मुहूर्त में '्र नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रिात कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग चिपका दें तथा एक बार देवदारु, सरसों तथा लोहवान इन तीनों को उबाल कर स्नान करें।




केतु एक धवजा भी है। किन्तु धवजा का अर्थ पतका या झंडा नही है। केतु को धवजा कहने का अर्थ है कि केतु परमात्मा की शक्ति का मूर्त रूप है। जिसके प्रभाव और चेतना से मनुष्य इस सृष्टि में व्याप्त उस सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी शाक्ति का अनुभव कर सकता है।

Wednesday, 24 March 2010

KNOW ABOUT RUDRAKSHA

Rudraksha the name itself conveys a meaning rudra + Raksha. Rudra means Lord Shiva, Raksha means Protection. Lord Shiva is the creator, preserver and destroyer in the form of trinity. Brahma, Vishnu, Mahesha are known as the God of trinity, they are the incarnation of Lord Shiva, The Supreme Power. The supreme power Lord Shiva controls the whole universe in the lineage of Trinity. The bead Rudraksha portrays the form of the Supreme God, the Om. The Universe was manifested in the form of Universal Sound & Om is original sound, the controller of universe.
Each bead of Rudraksha has a specific significance it generates particular vibrations and spiritual energy which gives positive effect on our body.
Due to negative vibrations and energy human body come under the influence of diseases, hurdles and changed mental attitude. If right Rudraksha is worn by the advice of good astrologer all troubles can be surmounted. Followed are few tips:
Ø One faced Rudraksha: It imparts the radiation of Sun. It enhances name and fame, wealth, gives honor and dignity in society, also cures diseases such as constipation, heart problem, bone problems, eye disorders and deficiency of Vitamin A & D
Ø Two faced Rudraksha : It imparts the radiations of Moon. It brings harmony in marital relations, keeps mind calm and peaceful, prevents from arguments and rivalries, also helpful in curing the diseases such as cough, cold, water borne diseases, mental disorders.
Ø Three faced Rudraksha: It helps in pacifying the malefic effects of planet Mars. It brings happiness, vitality and purity. It cures the problem of Blood Pressure and disease of women.
Ø Four faced Rudraksha: It is a life saver, enhances spiritualism, intellectual power, determination skill, courage, confidence and also cures diseases of chest, cancer, indigestion, skin disorders.
Ø Five faced Rudraksha: It strengthens the influence of planet Jupiter increases memory, enhances creativity, communication skills and cures diseases like nervous disorders, insomnia, small pox, tumor, liver trouble.
Ø Six faced Rudradsha: It signifies planet Venus and imparts knowledge and wisdom. It helps the persons involved in physical activities such as games etc., bravery jobs or in army force. It increases emotional and mental strength also cures the diseases related to females.
Ø Seven faced Rudraksha: It is helpful in pacifying the malefic effect of planet Saturn. It is good for deaf and dumb persons. It helps in removing unnecessary fears in mind and also cures the diseases like paralysis, baldness, stomach disorders, cerebrospinal meningitis.
Ø Eight faced Rudraksha: It is good for pacifying the evil effects of Planets Rahu and Ketu. It protects from accidents, arthritis, intestinal disorders.
Ø Nine faced Rudraksha: It enhances the power, authority, commanding skill, sources of comforts, luxuries and also cures deafness.
Ø Ten faced Rudraksha: It helps in controlling all nine planets and brings good fortune.
Ø Eleven faced Rudraksha: It increases wealth, boosts courage, increases spiritualism and inclination towards religious acts.
Ø Twelve faced Rudraksha: It helps in building foreign collaboration, relations, deals or journeys, enhances name and position.
Ø Thirteen faced Rudraksha: It brings cordial family and marital relations, cures general human body disorders and enhances social network.
Ø Fouteen faced Rudraksha: It increases spiritual power, brings success in all endeavors, increases opportunities of learning and education.
Ø Fifteen faced Rudraksha: It helps in elimination of all obstacles, enhances prosperity and intelligence.
Rudraksha should be worn on the basis of Janma Tithi and Lagna.
For astrological analysis, horoscope designing and purchase of original Rudraksha Contact at:
Shree Shani Dham
Asola, Fatehpur Beri
Mehrauli, New Delhi- 110074
Ph. No. 91-11-26653600 91-11-26653600 , 26654400

नवरात्र का नौवां दिन माँ सिध्दिदात्री

नवरात्र का नौवां दिन माँ सिध्दिदात्री का
सम्पूर्ण सिध्दियों को पूर्ण करने वाली माँ सिध्दिदात्री की उपासना
नवरात्र के नवम् तथा अंतिम दिन समस्त साधनाओं को सिद्ध एवं पूर्ण क रने वाली तथा अष्टसिद्धि नौ निधियों को प्रदान क रने वाली भगवती दुर्गा के नवम् रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी भगवती के अनुसार भगवान शिव ने मां की इसी शक्ति की उपासना क रके सिद्धियां प्राप्ति की थीं। इसके प्रभाव से भगवान का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। उसी समय से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर क हा जाने लगा है। इस रूप की साधना करके साधक गण अपनी साधना सफल करते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के पहले मां सिद्धिदात्री की उपासना अनिवार्य है।
पूजन विधि -
सर्वप्रथम लक ड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित क रें तथा सिद्धिदात्री यंत्र को भी चौकी पर स्थापित करें। तदुपरांत हाथ में लालपुष्प लेक र मां का ध्यान क रें।
ध्यान मंत्र -
सिध्दगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिध्दिदा सिध्दिदायिनी॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ध्यान के बाद हाथ के पुष्प को मां के चरणों में छोड़ दें तथा मां का एवं सिद्धिदात्री का मंत्र का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। देशी घी से बने नैवेद्य का भोग लगाएं तथा मां के नवार्ण मंत्र का इक्कीस हजार की संख्या में जाप क रें। मंत्र के पूर्ण होने के बाद हवन करे तथा पूर्णाहुति करें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा वस्त्र-आभूषण के साथ दक्षिणा देकर परिवार सहित आशीर्वाद प्राप्त क रें। कुंवारी कन्याओं का पूजन करे और भोजन क रायें। वस्त्र पहनायें वस्त्रों में लाल चुनरी अवश्य होना चाहिए क्योंकि मां को लाल चुनरी अधिक प्रिय है। कुंआरी क न्याओं को मां का स्वरूप माना गया है। इसलिए क न्याओं का पूजन अति महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है।
भोग
इस दिन भगवती को धान का लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है।

नवरात्र का आठवां दिन माँ महागौरी

नवरात्र का आठवां दिन माँ महागौरी का

सम्पूर्ण वैवाहिक सुख एवं विवाह शीघ्र प्रदान करने वाली माँ महागौरी की उपासना।

नवरात्र के आठवें दिन मां के आठवें स्वरू प महागौरी क ी उपासना की जाती है इस दिन साधक विशेष तौर पर साधना में मूलाधर से लेकर सहस्रार चक्र तक विधि पूर्वक सफ ल हो गये होते हैं। उनक ी कुं डलिनी जाग्रत हो चुक ी होती हैं तथा अष्टम् दिवस महागौरी क ी उपासना एवं आराधना उनक ी साधना शक्ति क ो और भी बल प्रदान क रती है। मां की चार भुजाएं हैं तथा वे अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण कि ये हुए हैं, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां क ा वाहन वृष है। अपने पूर्व जन्म में मां ने पार्वती रूप में भगवान शंक र क ो पति रू प में प्राप्त क रने के लिए क ठोर तपस्या की थी तथा शिव जी क ो पति स्वरूप प्राप्त कि या था। मां क ी उपासना से मन पसंद जीवन साथी एवं शीघ्र विवाह संपन्न होगा। मां कुं वारी क न्याओं से शीघ्र प्रसन्न होक र उन्हें मन चाहा जीवन साथी प्राप्त होने क ा वरदान देती हैं। इसमें मेरा निजी अनुभव है मैंने अनेक कुं वारी क न्याओं क ो जिनकी वैवाहिक समस्याएं थी उनसे भगवती गौरी की पूजा-अर्चना करवाक र विवाह संपन्न क रवाया है। यदि कि सी के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी क ी साधना क रें, मनोरथ पूर्ण होगा।

पूजन विधि -

सर्वप्रथम लक ड़ी क ी चौक ी पर या मंदिर में महागौरी क ी मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें तदुपरांत चौक ी पर सफेद वस्त्र बिछाक र उस पर महागौरी यंत्र रखें तथा यंत्र क ी स्थापना क रें। मां सौंदर्य प्रदान क रने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेक र मां क ा ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

श्वेते वृषे समारू ढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।

महागौरी शुभम् दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

ध्यान के बाद मां के श्री चरणों में पुष्प अर्पित क रें तथा यंत्र सहित मां भगवती क ा पंचोपचार विधि से अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन क रें तथा दूध से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। तत्पश्चात् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र क ी तथा साथ में ॐ महा गौरी देव्यै नम: मंत्र की इक्क ीस माला जाप क रें तथा मनोक ामना पूर्ति के लिए मां से प्रार्थना क रें। अंत में मां क ी आरती और क ीर्तन क रें।

भोग

इस दिन भगवती को नारियल का भोग लगाना चाहिये। फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार के संताप नहीं आ सकते।


नवरात्र का नौवां दिन माँ सिध्दिदात्री का


सम्पूर्ण सिध्दियों को पूर्ण करने वाली माँ सिध्दिदात्री की उपासना

नवरात्र के नवम् तथा अंतिम दिन समस्त साधनाओं को सिद्ध एवं पूर्ण क रने वाली तथा अष्टसिद्धि नौ निधियों को प्रदान क रने वाली भगवती दुर्गा के नवम् रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी भगवती के अनुसार भगवान शिव ने मां की इसी शक्ति की उपासना क रके सिद्धियां प्राप्ति की थीं। इसके प्रभाव से भगवान का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। उसी समय से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर क हा जाने लगा है। इस रूप की साधना करके साधक गण अपनी साधना सफल करते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के पहले मां सिद्धिदात्री की उपासना अनिवार्य है।

पूजन विधि -

सर्वप्रथम लक ड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित क रें तथा सिद्धिदात्री यंत्र को भी चौकी पर स्थापित करें। तदुपरांत हाथ में लालपुष्प लेक र मां का ध्यान क रें।

ध्यान मंत्र -

सिध्दगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिध्दिदा सिध्दिदायिनी॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

ध्यान के बाद हाथ के पुष्प को मां के चरणों में छोड़ दें तथा मां का एवं सिद्धिदात्री का मंत्र का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। देशी घी से बने नैवेद्य का भोग लगाएं तथा मां के नवार्ण मंत्र का इक्कीस हजार की संख्या में जाप क रें। मंत्र के पूर्ण होने के बाद हवन करे तथा पूर्णाहुति करें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा वस्त्र-आभूषण के साथ दक्षिणा देकर परिवार सहित आशीर्वाद प्राप्त क रें। कुंवारी कन्याओं का पूजन करे और भोजन क रायें। वस्त्र पहनायें वस्त्रों में लाल चुनरी अवश्य होना चाहिए क्योंकि मां को लाल चुनरी अधिक प्रिय है। कुंआरी क न्याओं को मां का स्वरूप माना गया है। इसलिए क न्याओं का पूजन अति महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है।

भोग

इस दिन भगवती को धान का लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है।

देर रात पूर्ण आहुति से संम्पन हुआ नवरात्री का मंत्र साधना अनुष्ठान

  देर रात पूर्ण आहुति से संम्पन हुआ नवरात्री का मंत्र साधना अनुष्ठान साऊथ दिल्ली के असोला में स्थित श्री सिद्ध शक्ति पीठ शनिधाम में नवरात्री...